________________ ॥णमो त्यु णं समणस्स भगवओ महइ-महावीर-चद्धमाणसामिस्स॥ णमो अणुओगधराणं थेराणं / सिरिदेववायगविरइयं नंदिसुत्तं [सुत्तं 1. तित्थयरमहावीरत्थुई] 61. जयइ जगजीवजोणीवियाणओ जगगुरू जगाणंदो। जंगणाहो जगबंधू जयइ जगपियामहो भयवं // 1 // जयइ सुयाणं पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ / जयइ गुरू लोगाणं जयइ महप्पा महावीरो // 2 // भदं सव्वजगुज्जोयगस्स भदं जिणस्स वीरस्स। भदं सुरा-ऽसुरणमंसियस्स भदं धुयरयस्स // 3 // [सुत्तं 2. संघत्थुई] . 2. [णभवणगहण ! सुयरयणभरिय ! सणविसुद्धरच्छागा ! / संघणगर ! भदं ते अक्खंडचरित्तपागारा ! // 4 // संजम-तवतुंबा-ऽरयस्स णमो सम्मत्तपारियल्लस्स। अप्पडिचक्कस्स जओ होउ सया संघचक्कस्स // 5 // भदं सीलपडागूसियस्स तव-णियमतुरगजुत्तस्स / संघरहस्स भगवओ सज्झायसुणंदिघोसस्स // 6 // 1. जिणवसभो सललियवसभविकमगती महावीरो चूपा०॥ 2. स्थगरा० सं०॥ 3. गुणभवण इति संजम-तव० इति भई सील. इति च सूत्रगाथात्रिक चूर्णी पश्चानुपूर्ध्या व्याख्यातमस्ति॥ 4. अखंडचारि° मु०॥ 5. अत्र तुंबारस्स इति मलयगिरिसम्मतः पाठः। तदनुसरणेन च केनापि विदुषा खं० मो० प्रत्योः संशोधनं कृतं दृश्यते॥ 6. सुमिघोहपा० मपा। अंगविजाशास्त्रेऽपि “तत्थ सरसंपन्ने हिरन्न-मेघ दुंदुभि-वसभ-गय-सीह-सद्दल-भमर-रधणेमिणिग्घोस-सारस-कोकिल-उक्कोस-कोंच-चक्काक-हंस-कुरर-बरिहिण-तंतीसर-गीत-वाइत-तलतालघोस-उक्कुटुछेलित-फोडित-किंकिणिमहुरघोसपादुन्भावे सरसंपण्णं बूया।" इत्यत्र मिणिग्घोस इति पदं दृश्यते॥