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________________ 5 9/50-55. - यथाक्रमं ध्यानफलं द्वे धावत् पञ्च नोर्धजम्।---- तल्लामो ध्यानधाक शदात तत स्वतश्च ततोऽपितो॥५॥ स्वभूमिकेन निर्माण भाषणं त्वधरेण च। निर्मात्रैव सहाशास्तुरधिष्ठायान्यवर्तनात् / / 5 / / मृतस्याप्यस्त्यधिष्ठानं नास्विरस्यापरे तुम | आदावेकमनेकेन जितायां तु विपर्य यात्॥५२॥ अध्याकतं भावनाजे त्रिविध तूपपत्तिजम् / ऋद्धिमन्त्रौषधा द्याश्च कर्मजा घेति पञ्चधा // 53 // दिव्ये श्रोत्राधिणी रूपप्रसादौ ध्यान भूमिको। सभागाबिकले नित्यं दूरस्मादिगोचरे // 54 // वित्रि साहसिका-5सय दृशोऽहन खड़- दैशिकाः। अन्यदप्युपपच्याप्तं तद्दयो नान्तराभवः // 55 // चेतोजन्म तु तत् त्रेधा तर्कविद्याकृतं च यत् / जानते नारका आदौ नृणां नोत्पत्तिलाभिकम् // 56 // सान निर्देशो नाम सप्तमं कोशस्थानम् // 1 ऋद्धिमत्रौषधाद्यांश्च- Ms.1
SR No.004348
Book TitleAbhidharmkoshkarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherJambuvijay
Publication Year
Total Pages84
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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