SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्भारधर्मकायाभ्यां जगतध्यार्थचया --------- समता सर्वबुद्धानां नायुर्जाति प्रमाणत: // 34 // शिष्य साधारणा अन्ये धर्माः केचित् प्रथाजनैः। अरणानिधितानप्रतिसंविदणादयः // 35 // संवृतितानमरणाध्यानेऽन्येऽकोप्यधर्मन:। मृजानुत्पन्नकामाप्तसवस्तु केशगोचरा: // 36 // तथैव प्रणिधितानं सर्वालम्बंतु तत्तथा| धर्मार्थयोनिरुक्तौ च प्रतिभाने च सम्बिदः // 3 // त्रिसो नामार्थविज्ञानमविवर्य यथाक्रमम्। चतुर्क युक्तमुक्ताभिलापमार्गवशिवयोः॥३८॥ बामार्गालम्बना चासो नवतानानि सर्वभूः। दश प्रड्वाऽय संवित् सा सर्वत्रान्ये तु सांवृतम् / / 39 // कामध्यानेषु धर्मे विद् वाचि पृथमकामयोः / विकलाभिर्न तल्लाभी पडते प्रान्तकोटिकाः // 40 // तन बविध ध्यानमन्त्यं सर्वभूम्यनुलोमितम् / वृद्धिकाष्ठागतं तन्तु बुद्धान्यस्य प्रयोगजः।। 41 //
SR No.004348
Book TitleAbhidharmkoshkarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherJambuvijay
Publication Year
Total Pages84
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy