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________________ 1 असमयविमुक्कोऽत:-.../ MIS अर्हन्तः प्रण्मता स्तेषां पञ्च श्रद्धा धिमुक्तजा। विमुक्तिः सामयिक्येषामको - .6. सामयिकी [तद्विमुक्तिरकोप्याऽकोव्यधर्मणः / / 5 / / असमयमुक्तस दृरि प्राप्तान्वयश्च सः। .. तोत्रा भादितः केचित् केचिदुत्ता पनागता // 5 // गोत्रात चतुर्णा पञ्चानां फलाट्रामिर्न पूर्वकात् / 'शैसाइनार्याश्च पदोत्रा दृभागेण न संचरेत् // 5 // . प्राप्ताप्राप्तोपभोगेभ्यः परिहाणि स्त्रिधा मता) अन्त्या वास्तुरकोप्यस्य मध्याऽप्यन्य स्य तु त्रिधा॥६॥ मियते न फलभूष्णे न च कार्य करोति स:। विमुक्त्यानन्तर्यमार्गा नया ऽकोप्येऽतिसेवनात् // 6 // एकैकशो दृष्टिलाभेऽनासवा नृषु बर्धनम् | अशैसो नव मिश्रित्य भूमीः समस्तु षड् यतः // 62 // सविशेषं फलं त्यक्त्वा फलभाप्नोति वर्धयन् / दौ बुद्रौ श्रावका: सप्त' चैते नवविधन्द्रियाः॥१३॥ 2. नात् पुन:--.Y.P | 3 चतुर्गो गोत्रात्-... | + पड़ोत्रा अनार्यशैमा मार्गे मेन्ट्रियसंचारः // 59 // 6.v.2 5. पया-2.४.९.16 एकैकस्तु दृषिप्राप्ते ..V.P.) 7 ते सनवधिधेन्द्रिया:-L.V.P. ...
SR No.004348
Book TitleAbhidharmkoshkarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherJambuvijay
Publication Year
Total Pages84
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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