________________ "अशुभं कर्ष कामाप्तं शुभं वेव यथाक्रमम। ------- "कृष्ण शुकोभयं कर्म तनयाय निराहावम् // 6 // धर्मशान्ति षु) वैराग्ये चानन्तर्य पपाष्टके ... या चेतना द्वादशधा कर्मकृष्ण अयाय तत् / / 61 / / 'नवमे चेतना या सा कृष्णा शुकुक्षयाय चत) ' शुकुस्य ध्यानवैराग्ये ध्वात्यानन्तर्यमार्गजा) 62 // अन्त्ये नरक वेधान्यकामवेद्यं यं विदुः/ दृग्यं कृष्णामन्येऽन्यत् कृष्ण शुक् तु कामजम् // 63 // - अौर्स काय वाकूर्म मनश्चैव यथाक्रमम् | मौनत्रयं त्रिधा शौचं सर्व सूचरितत्रयम् // 6 // अशुभं कर्मादि मतदुचरितं त्रयम् / अकर्मापि त्वभिध्यादि मनोदुश्चरितं त्रिधा॥६५॥ विपर्ययात् सुचरितं तदौदारिक संग्रहात्। दशकर्म पथा उक्ता यपायोगं शुभाशुभा:॥६६॥ अशुभाः षडविज्ञप्ति दिध करतेऽपि कुर्वतः। द्विविधाः सप्त कुशाला अवितप्ति: समाधिमाः // 6|| A