________________ ग ऊनव L.V.P. ----+कपीणि जीवितंदूखे सासवाणि विधा नम ||9| ---------- विपाको जीवितं वैधाद्वादशात्याष्टकारते। दौर्मनस्याच्च तत्वों सविपाकं दा विधा॥१०॥ . मनोऽन्यवित्ति श्रद्धादीन्यष्टकं कुशल विधा। दौर्मनस्य मनोन्याचे वित्तिस्त्रेधान्य देकपा // 1 // कामाप्तममल हित्वा रूपाप्तं स्त्रीपुमिन्द्रिये | . दूरवे चहित्वाऽस्याप्तं सुरखे चापोझ रुपि च // 12 // मनोवित्तित्रयं ब्रेधा दिहिया दुर्मनस्कता। नवभा वन या पञ्च त्वयान्विपि न त्रयम् / / 13 // कामेष्वादौ विपाको वेलभ्यते नोपपादुके। नैः षड्डा सप्त वा sau वा पड़ रुपेवेक मुत्तरे।।१४।। निरोधयत्युपरमानारूप्ये जीवितं मनः उपसा चैव रूपेऽष्टो काम दश मवाट वा // 15 // काम मृत्यौ तु चन्वारि शुभे सर्वत्र पञ्चे च। नवाप्तिरत्यफलयोः सप्ताष्ट नवभिईयोः / / 16 / / 8 रहत्व- एकादशभिरहनिमुक्तं त्वेक स्य सम्भवात्। उपेक्षा जीनितमनो युक्तोऽवश्यं त्रयालिनः॥3॥ चतुर्भिः सुखकायाभ्यां पञ्चभियमुरादिमान् / M.st