________________ जैनगीतासम्बन्धः 163 सादृशों जानकी दृष्ट्वा रामो मूर्छामुपागतः / पतितो धरणौ स्वस्थी-कृतश्चन्दनसेवनैः // 1518 // उचे रामो मया पत्नि ! कोऽपराधः कृतस्तत्र / कथं मामेककं मुक्त्वा व्रतं लास्यति साम्प्रतम् ? // 1516 // वां विना मेऽधुना प्राणाः करिष्यन्ति प्रयाणकम् / सीताऽवग् न पते ! शोकः क्रियते पुरुषोत्तमैः॥१५२०॥ एक एवासुमान् याति परलोकं स्वकर्मणा / एक एव समायाति प्राग जन्माऽर्जितकर्मणा // 1521 // 'भवारण्यं भीमं तनुग्रहमिदं छिद्रबहुलं बली कालश्चौरो नियतमसिना मोहरजनी / ___ गृहीत्वा ज्ञानस्वं विरतिफलकं शीलकवचं समाधानं कृत्वा स्थिरतरदृशो जाग्रत जनाः! // 1522 // एवं पर्यवसाय्यैव राम जनकनन्दिनी / सर्वगुप्तगुरूपान्ते ललौ दीक्षां शिवप्रदाम् / / 1523 // तदा रामेण विदधे तथा दीक्षोत्सवो महान् / यथा प्रापुर्जना बोधि-बीजं निवृतिदायकम् // 1524 // हरिणोक्त त्वया सीते ! पालनीयं तथा व्रतम् / यथा करतलेऽभ्येति शिवश्रीस्तव लीलया // 1525 / / सुत्रतायतिनीपार्श्वे सर्वगुप्तेन सूरिणा / मुक्ता सीता तदा शुद्ध-क्रियाशिक्षणहेतवे // 1526 / / श्रीसर्वगुप्तसूरीश-पार्वे श्रीरामलक्ष्मणौ / लवाङकुशौ तथाऽन्येऽपि धर्म श्रोतुमुपागमन् // 1527 / / सीतादियतिनीयुक्ता सुव्रता च प्रवर्तिनी / धम्मोपदेशनां श्रोतु श्राद्धीयुक्ता समागमत ||1528|| सूशीशः सर्वगुप्तोऽथ गिराऽब्दगर्जिताऽऽभया / देशनां कत्त मारेभे भव्याङ्गियोधहेतवे // 1526 // यतः-"जत्य अहिंसा सच्चं प्रदत्तपरिवजणं च बंभं च / दुविहपरिगहविरई तं हवइ सिवाय चारित्तं // 1 // विणो दया दाणं सीलं जाणं दमो नहा झाणं / कीरइ ज मोक्खट्ठा तं हवइ सिवाय चारित्तं // 2 // जइ धम्मक्रवर संभलइ नयणे निद्द न माइ / वत्त करंताए मर कूलरेडा व किं रयणि बिहाइ (?) // 3 // धम्मसरिसा जे गया ते गुगसायरा दीह / अवरह पायारंभी सिउं भा सम देजे लीह / / 4!! कोइ पुण भवियसीहो इक्क भवे भाविऊण सम्मतं / वीरो कम्मविसोहि काऊण य लहइ निव्याणं // 5 // लद्धण वि जिणधम्मे बोहिं स कुडुबकदमंमि निहुत्तो। इंदियसुहसाउलो परिहिंडइ सो वि संसारे // 6 // " श्रुत्वेतद्राम प्राचष्ट संसारासारतां पुनः / जानतो मे कथं नैव विरागो जायतेतराम् ? // 1530 // ज्ञान्याऽऽचष्टाच्युतेनामा बलिना मोह एधते / तेन मोहेन ते नैव वैराग्यं जायतेऽधुना // 1531 // ततो रामो जगो मोक्षो भवात् कस्माद् भविष्यति / ज्ञान्याह ते शिवप्राप्ति-र्जायतेऽत्र भवे बलिन् ! / / 1532 / श्रुत्वेति राघवः सर्व-सर्वज्ञसदनेष्वपि / व्यधात् पूजों जिनेशानां सर्वपौरसमन्वितः // 1533 // इतः सीता तपस्तीन कुर्वाणा प्रतिवासरम् / दवदग्धावनीरड्वत् कृशदेहाऽभवत्तदा // 1534|| महाव्रतानि पञ्चैव शुद्धानि जनकात्मजा / पालयन्ती तपस्तीत्र ततान शिवशर्मदम् // 1535 // षष्ठाष्टमादिकं तीव्र कुर्वाणा जनकात्मजा / षष्टिं वर्षाणि दिवसा-त्रयस्त्रिंशद् व्यधात्तमाम् / / 1536 // प्रान्ते संलेखनां कृत्वा-ऽऽराधनां क्षमणात्मिकाम् / सीता मृत्वाऽच्युते स्वर्ग-ऽच्युतेन्द्रोऽजनि सत्तनुः // 1537 // द्वाविंशतिसमुद्रायु-भूरिदेवनिपेवितः / मनसा निर्जरीभोग-लीनोऽच्युताधिपोऽजनि // 1538 // यत:-"दो कप्प कायसेवी दो दो फरिसरूवस(हिं / चउरो मणेणुवरिमा अप्पवित्रारा अणंतसुहा // 1 // " नारी मृत्वा प्रजायेत नरो नरोऽवला पुनः / राजा रङ्को भवेद्रको राजा कर्मनियोगतः / 1536 // यतः-"राया जायइ भिचो भिच्चो रायत्तणं पुण उवेइ / माया वि हवइ धूया पिया वि पुत्तो समुभवइ // 1 //