________________ जैनगीतासम्बन्धः 185 000000000000000000000000000 000000000000000 त्याजिता भवताऽरण्ये यदाऽऽवां जननी पितः ! / तदा त्वावां स्थितौ गर्भे भवदीयौ सुतौ ननु // 1302 // ज्ञात्वेति स्वसुतौ रामो दोामालिङ्गय वेगतः / स्वाङके निवेशयामास वर्यसन्मानदानतः / / 1303 // रामोऽवग हा! मया पत्नी सीता युष्मत् समन्विता / यदत्याजि वने तेन श्वभ्र पातो भविष्यति // 1304 // उक्तश्च- "हा हा महातिकट्ठ पुत्ता गब्भट्ठिा अणजेणं / सीयाए समं चत्ता भयजणणे दारुणेऽरण्णे // 1 // " लवणोऽङकुशयुग प्राह नत्वा रामपदाम्बुजम् / एकस्त्वं वा पिताऽन्यस्तु वज्रजङ्घमहीपतिः / / 1305 // येन वां जननी वज्र-जङ्घ नेव भूभुजा / पालिता स्वगृहे नीत्वाऽरण्यान् मुक्ता त्वया सती // 1306 // जानक्यपि जगौ तातो जनको जनकादभूत् / अरण्ये रक्षणादन्यो वज्रजङ्घः पिताऽभवत् / / 1307|| ततो दाशरथिर्वज्र-जङ्घाय मेदिनीभुजे / ग्रामाणामयुतं दत्त्वा तोषयामास सादरम् // 1308 / / पुष्पविमानमारूढां सीतां पुत्रद्वयान्विताम् / कृत्वा रामो निजावास-मानिन्ये रुचिरोत्सवम् // 1306 // यतः-"एत्तो साएयपुरी सग्गसरिच्छा कया खणद्धणं / बहुतूर-मंगलरवा णडणपणचिउग्गीया // 1 // पुत्तेहि समं रामो पुष्फविमाणं तत्रो समारूढो / तत्थ वि लग्गो रेहइ सोमित्ती विरइयाभरणो // 2 // " ततो निःशेषसर्वज्ञ-प्रासादेषु जिनार्चनाम् / कुर्वाणः कारयंश्चान्यैः स पुष्पादिभिरादरात् // 1310 // केचिद् भणन्ति सीता तु पुण्डरीकपुराद् वरात् / आनीता दाशरथिना मिलनात् पुत्रयोरनु // 1311 // तदा रामो जगौ सीते ! त्वं सती विद्यसे खलु / लोका वदन्ति पौलस्त्य-गृहे बहुदिनान स्थिता // 1312 // तेन नो ज्ञायते सीता सती वाप्यसती पुनः / एतदेव महद खं विद्यते नापरं पुनः // 1313 / / ततः सीता पुरोधाने गत्वा प्राह पतिं प्रति / यदाऽहं दिव्यकरणाच्छुद्धा स्यां ज्वलनादिषु // 1314 / / त्रिशत्या तु करैव्यूढा परिखान्य क्षदिक्षु च / खदिराङ्गारभृच्चक्रेऽनुगै रामनिदेशतः // 1315 / / ततश्च खदिराङ्गा-ज्वलद्भिर्बहुभिभृशम् / खातिकायां भृतायां तु विवेश जनकात्मजा / / 1316 / / तदा ते खदिराङ्गारा बभूवुः सलिलं तृतम् / वर्यशीलप्रभावेण सीतोत्तीर्णा ततश्च ताम् / 1317 // रामं कालमुखं दृष्ट्वा पश्यतीषु प्रजासु च / सीता स्वभक्तिसूचार्थ काव्य मेकं जगाविति // 1318|| मा गा विषादभवनं भुवनैकवीर ! निःकारणं विगुणिता क्रिमियं मयेति / देवेन केनचिदहं दहने निरस्ता निस्तारिता तु भवता हृदयस्थितेन / / 1316 / / ततस्तदा जनाः सर्वे जानक्या शीलमद्धतम् / निरीक्ष्य जगदुःप्रोच्चैः स्वरैः हर्षप्रपूरिताः // 1320 // सीतया दुरपवादशङ्कया पावके स्वतनुराहुतिः कृता / पावकः सुजलतामियाय यत् तत्र शीलमहिमानिधन्धनम् // 1321 // यतः-"रामेण तो भणिया पासत्था किंकरा खणह खाणिं / तिण्णेव उ हत्थसया समचउरंसावगाढा य // 1322 // पूरेह इंधणेहिं कालागरु-चंदणाइचूलेहिं / चंडं जालेह लहुँ खाणीए सन्यो अग्गिं / / 1323 / / धगधगंतसद्दो पज्जलिनो हुअवहो कण यवष्णो / गाउयपरिमाणासु य जालासु णहं पदीप्पंतो // 1324 // अइचवल चंचलाउ सव्वत्तो विप्फुरंति जालाओ। [जम जम्म जिह्व समा दारा ] सोयामणीअो नजइ गयणयले उग्गतेयाउ // 1325||