________________ 0000000000000 182 श्त्रुञ्जय-कल्पवृत्ती तत्र गत्वा मृग-व्याघ्र-शश-जम्बुकसेवितम् / दृष्ट्वा चाऽवक कुतोऽत्रागाः किं नामा कस्य गेहिनी ? // 1128 // एवं प्रोक्ता यदा नैव जजल्प जनकात्मजा / तदा नृपानुगः प्राह मदनस्तत्पुरस्तदा // 1226 / / पुण्डरीकपुरस्वामी वज्रजङ्घाभिधो नृपः / ज्ञानदर्शनचारित्र-सेवी जिनार्चकोऽस्त्यसौ // 1230 // शङ्कादिदोपरहितः श्रुतार्हद्वचनश्रुतिः / परोपकारकजीव वत्सलः करुणापरः // 1231 / / युग्मम् // गजानां धरणार्थ स भूपो धम्मिशेखरः / आयातोऽत्र बने विद्या-बलशाली सतां हितः // 1232 // उक्त च-"पंचाणुव्वयधारी वच्छे सम्मन उत्तमगुणोहो / देव-गुरुपूअणरो साहम्मिअवच्छलो वीरो // 1 // " श्रुत्वेति जानकी मातृ-पितृकान्तादिकं समम / सम्बन्धं स्त्रवनत्यागं यावत्तावजगौ शनैः // 1233 // अहमर्हजनुभूम्या-दिकवन्दनछद्मतः। रामेण त्याजिताऽत्रैव पूर्वकर्माभियोगतः // 1234 / / यतः-'निक्खमणनाणनिव्वाणजम्मभूमीओ वंदइ जिणाणं / न य वसइ साहुजणविरहियम्मि देसे बहुगुणेवि एवं प्रोक्त्वा निजं कान्तं स्मृत्वा चेतसि जानकी / रुदन्ती वारिता वज्र-जङ्घ नेति महीभुजा // 1236 // मा त्वं रुदिहि सीते हे ! जानन्ती सर्वविद्वचः / न छुट्यते पुरा चीण-कर्मणा देहिभिः क्वचित् // 1237|| यतः-"किं ते साहुसयासे ण सुअंजह णिययकम्मपडिबद्धो / जीयो धम्मेण विणा हिंडइ संसारकंतारे?॥१ संजोगविप्पोगा उ सुहदुक्खाई बहुप्पयाराई / पत्ताइ दीहकालं अणाइणिहणेण जीएणं / / 2 / / खिइतेअजलथलाइसु सकयकम्मदएण जीवाणं / तिरिप्रभवे दुक्खाई छुहतिहाईणि भुत्ताई // 3 // विवहाववायतज्जण-निब्भत्थणरोअसोअमाइसु / जीवेण मणुअजम्मे अणुहूयं दारुणं दुक्खं // 4 // कुच्छिअतवसंभ्या देवा दट्ठण परमसुरविहवं / पावंति तेवि दुक्खं विसेसो चवणकालम्मि // 5 // गरएसु वि उववण्णा जीवा पावंति दारुणं दुक्खं / करवत्त-जंत-सामलि-विसरणीमाइ विविहं // 6 // तं णत्थि जणयधूए ! ठाणं सुरासुरसेविते वि तेलोक / जम्म मञ्च य जरा जत्थ ण जीवेण संपत्ता // 7 // अशुभोदयतस्त्वं तु रामेण त्याजिता बने / शुभोदयात् पुना रामो भवती नेष्यते गृहे // 1238 / / भो भो भगिनि ! सीते ! त्वमुत्तिष्ठेहि पुरे मम / कुर्वन्ती धर्ममाप्तोक्तं सन्तिष्ठ सदने सुखम् / / 1236 // श्रुत्वेति वचनं वज्र-जङ्घस्य जनकात्मजा / ध्यायन्ती जिनपं चिते हृष्टा धत्ते धृति तदा / 1240 // जानकी शिबिकारूढां कृत्वा वज्रमहीपतिः / भगिनीमिव नीन्ये स्व-गेहे सूत्सवपूर्वकम् // 1241 // वज्रजामहीशेन दनाऽऽवासे सुखं स्थिता / सीता भामंडलावासे स्थिति स्वां मन्यते तदा // 1242 / / इतो रामान्तिकेऽभ्येत्य कृतान्त उचिवानिति / स्थाने त्वयोदिते सीता यदा मुक्ता तदा जगौ // 1243 / / सिंहक्षेभल्ल-चित्रक-गोमायु-व्याघ्रभीषणे / वने मुक्ता मयाऽवादी-दश्र पूरितलोचना // 1244 // पत्युम दूषणं नास्ति दूषणं मे कुकर्मणः / येन छलादहं भृत्य- पादित विमोचिता // 1245 // त्वयोच्यं मे पुरः पत्युः सीता मुक्ता वने वरे / ध्यायन्ती श्रीजिनं वन्यहाराऽस्ति सुखशालिनी // 1246 / मा मे वियोगतो दुःखं श्रुत्वा दाशरथिः पतिः / हृदयस्फोटतो याया-न्मरणं जीवितात्ययात् // 1247 / / सिंह-व्याघ्रादिजीवेभ्यो दुष्टेभ्यो विभ्यतीतराम् / कम्पमानतनुमुक्ता मया परं तु सा पुनः // 1248 / / न ज्ञायतेऽधुना सा तु सिंहादि-श्वापदेवने / भक्षिताऽस्त्यथवा जीव-धारिणी जीवितौजसा // 1246 / / यतः-"सामिय सहावभीरू अहिययरं दारुणे महारण्णे /