________________ जेनगीतासम्बन्धः 181 .000000000000000000000000000 कलङ्किताऽथ सीता चे-द्रक्ष्यते स्वीयसमनि / तदा कलङ्क आत्मीय-देशे भवति निश्चितम् // 1211 // ततो दाशरथश्छन्नं भृत्यं कृतान्तनामकम् / आकार्याऽवग् रथारूढां कृत्वा जनकनन्दिनीम् // 1212 // गङ्गायाः पुरतः कूले गत्वा त्यक्त्वाऽधुना द्र तम् / आगम्यं भवताऽत्रैव निर्विचारं त्वमेककः / / 1213 // ततोऽष्टापदसवेज्ञ-वन्दनाछलतस्तदा / कृत्वा सीतां रथारूढां कृतान्तश्चलितो निशि // 1214 // भन्यस्यां दिशि गच्छन् स कृतान्तःसीतयोदितः।भ्रातस्त्वं कथमन्यस्यां दिशियासि निगद्यताम् ? ||1215 // कृतान्तोऽवक तव प्राण-प्रियेणोचे ममाऽग्रतः / सीतां कलङ्किनी गङ्गा-वरकूले त्यजाऽचिरात् // 1216 // ततो जनकनन्दिन्या ध्यातं मे रमणोऽधुना / देवेन प्रेरितो गङ्गा-छले त्याजयति ध्रुवम् // 1217 // उत्तीर्य तु नदीकूलं सीतां तत्र त्यजन् वने / दध्यावहमधन्योऽस्मि यतोऽभवं हि किङ्करः // 1218 / / यतः-"णिअइट्ठव जिअस्स उ अहिरं दुक्खेक तग्गय मणस / भिचस्स जीवियानो कुक्कुरजीयं वरं हवइ / 1 // पग्घरलद्धाहारो साणो होऊण वसइ सच्छंदो / भिच्चो परब्बसो पुण विकिप्रदेहो निप्रयकालं // 2 // भिचस्स णरवइणं दिन्नादेसस्स पावणिरयस्स / न य हवइ अकरणिजणिदियकम्मपि जं लोए // 3 // पुरिसत्तणम्मि सरिसे जं प्राणा कुणइ सामिसालस्स / तं सव्वं पच्चस्खं दीसह अ फलं अहम्मस्स ||4|| धिद्धी अहो अकज जं पुरिसा इंदिएसु आसत्ता / कुव्वंति अह भिच्चत्तं ण कुणंति सुहालयं धम्मं // 5 // " सीता प्राह कृतान्त ! त्वं मे पत्युः पुरतस्त्वया / वक्तव्यं प्रसधैव मयि दुष्टतमोजुषि // 1216 // अहं पूर्वकृतं कर्म दुष्ट भोक्ष्ये वनस्थिता / त्वया जिनोदितो धर्मो न मोक्तव्यः शिवप्रदः // 1220 // यतः-"रयणं पाणितलाओ कह वि पमाएण सायरे पडियं / केण उवाएण पुणो तं लगभइ मग्गमाणेहिं // 1 // पक्खिविऊण य कूवे अमयफलं दारुणे तमंधारे / जह पडिवाइ दुक्खं पच्छायावाहो बालो // 2 // प्राकण्यँतद्वचः सीतां विमुच्य तत्र कानने / कृतान्तश्चलितः पश्चा-नत्वा सीतापदाम्बुजम् / / 1221 // सीता तत्र स्थिताऽत्यन्तं दुःखिनी करुणस्वरम् / रुदन्तीति जगौ कान्त ! कथं त्यक्तास्म्यहं वने ? // 1222 यतः-"हा पउम नाह सत्तम ! हा विहलिअजणसुवच्छल गुणोह / सामिय भयद्द आए किंण महं दरिसणं देहि // 1 // तुह दोसस्स महाजस ! थेवस्स वि णत्थि एत्थ संबंधो / अइदारुणाण सामित्र मह दोसो पुवकम्माणं / 2 / " किमत्र कुरुते तातः किं पतिः किं च बान्धवः / दुःखं पूर्वार्जितं चेत्र भोक्तव्यं मयका किल / / 1223 // यतः- "नूणं अवनवायं लोए अणुट्टियं मए पुव्वं / घोराटवीए मज्झे पत्ता जेणेरिसं दुक्खं // 1 // महवा वि य अन्नजम्मे घितणं वयं मए पुणो भग्गं / तस्सोदएण एयं दुःखं अइदारुणं जायं // 2 // किं वावि कमलसंडे विनोइयं हमजुअलयंपुव्वं / अइणिग्घिणाए संपइ तस्स फलं चेव भोत्तव्यं // 3 // अहवा वि मए समणा दुगंछिया परभवे अपुनाए / तस्स इमं अणुसरिसं भुजेयव्वं महादुक्खं // 4 // " ध्यात्वेति जानकी चित्ते स्मरन्ती श्रीजिनप्रियो / व्याघ्रादि भैरवेऽरण्ये तस्थौ निर्भयमानसा // 1225 // यत् कृतं मयका पूर्व पापं जीववधादिकम् / तदत्र विलयं शीघ्र यास्यत्येव मम स्फुटम् / / 1226 / / उच्चैः स्वरं कृपास्थानं रुदन्ती जनकात्मजाम् / निशम्य वज्रजङ्घाह्वः पुण्डरीकपुराधिपः // 1227 //