________________ प्रस्तावना 23 उपरिलिखित सभी ग्रन्थ प्राकृत भाषामें रचे गये हैं। : 6. आलापपद्धति-यह गद्य संस्कृत भाषामें रचित एकमात्र ग्रन्थ अभी तक आ० देवसेनका उपलब्ध हुआ है। इसमें 16 अधिकारोंके द्वारा क्रमसे द्रव्य, गुण, पर्याय, स्वभाव, प्रमाण, नय, गुण व्युत्पत्ति, पर्याय-व्युत्पत्ति, स्वभाव-व्युत्पत्ति, एकान्त पक्षमें दोष, नययोजना, प्रमाणलक्षण, नयस्वरूप और भेद, निक्षेप-व्युत्पत्ति, नय भेदोंकी व्युत्पत्ति और अध्यात्मनयोंका बहुत सुन्दर विवेचन किया गया है / जैन स्याद्वादको जाननेके लिये यह नयवाद जानना अत्यावश्यक है। संस्कृत टीका और उसके रचयिता तत्त्वसारको प्रस्तुत एक ही संस्कृत टीका प्राप्त हुई है / शास्त्र-भण्डारोंकी अनेक सूचियोंके देखनेपर भी अन्य कोई दूसरी टीकाके होनेका कोई संकेत नहीं मिला / प्रस्तुत संस्कृत टीकाकी प्रति ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन ब्यावर की है जो किसी प्राचीन प्रतिसे हालमें ही नकल की गई है / लेखककी असावधानीसे एवं प्राचीन प्रतिको ठीक नहीं पढ़ सकनेसे अनेक पाठ अशुद्ध हो गये हैं और दो-तीन स्थलोंके पाठ छूट भी गये हैं। उन छूटे पाठोंके प्रकरणके अनुसार बनाकर ( .) कोष्ठकमें दिया गया है। (देखो-गाथा 20 की टीकामें पाँचवीं और छठी नरक भूमिका कोष्ठकान्तर्गत रिक्त पाठ) . जिन अनेक स्थलों परके अशुद्ध पाठ प्रयत्न करनेपर भी शुद्ध नहीं किये जा सके हैं, उन्हें ज्यों का त्यों देकर ( ? ) इस प्रकारसे कोष्ठक भीतर प्रश्नचिह्न दे दिया गया है। ___टीकाकारने अपने मंगलाचरणके बाद श्री नेमीश्वर आदि तीर्थोंकी यात्रासे लौटकर जा धर्मोपदेश देते हुए श्री अमरसिंहके लिये तत्त्वसारकी टीका रचनेका निर्णय किया है उस नगरका नाम हस्तलिखित प्रतिमें 'श्रीयथपुर' को हमने 'श्रीपथपुर' किया है। पर यह वर्तमानमें कौन-सा नगर है, यह हम नहीं जान सके हैं। इससे आगेके 'तथैत्वदान्नक्ष्मीकृत' पाठको भी शुद्ध नहीं किया जा सका और इसी कारण उसका भाव भी स्पष्ट नहीं हो सका है। इसीके आगे दिये गये 'ठः' पदका क्या भाव है, यह समझमें नहीं आनेसे हमने 'ठाकुर' अर्थ किया है। यदि किसी विद्वान्को उक्त पाठ शुद्ध प्रतीत हो जावें तो वे सूचित करनेकी कृपा करें। .. प्रस्तुत संस्कृत टीकाके रचयिताने टीकाके अन्तमें जो प्रशस्ति दो है, उससे सिद्ध है कि काष्ठासंघ, माथुरगच्छ और पुष्करगणके भट्टारक क्षेमकीतिके प्रशिष्य और श्री हेमकीर्तिके शिष्य श्री कमलकीर्तने इस टीकाको रचा है। काष्ठासंघकी जो गुर्वावली 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा' के चतुर्थ भागमें दी गई है, उससे भी उनके उक्त कथनको पुष्टि होती है / उक्त गुर्वावलीमें दिये गये कुछ पद्य इस प्रकार हैं अध्यात्मनिष्ठः प्रसरत्प्रतिष्ठः कृपावरिष्ठः प्रतिभावरिष्ठः। पट्टे स्थितस्य त्रिजगत्प्रशस्यः श्रीक्षेमकीर्तिः कुमुदेन्दुकीत्तिः // 33 // तत्पट्टोदयभूधरेऽतिमहति प्राप्तोदयाद् दुर्जयं रागद्वेषमदान्धकारपटलं सञ्चित्करर्दीरुपान् / श्रीमान् राजित हेमकोतितरणिः स्फीतां विकासश्रियं भव्याम्भोजचये दिगम्बरपथालङ्कारभूतां दधत् // 34 //