________________ 222 373) द्वे एव प्रमाणे इत्यनेन संख्यानियममाह / तथा हि बौद्धानां द्वे एव प्रमाणे प्रत्यक्षानुमाने१ / शेषप्रमाणानामत्रैवान्तभावात् / अन्तभावश्च प्रमाणसमुच्चयादिषु चर्चितत्वान्नेह प्रतन्यते / ཚད་མ་ལ་ “གཉིས་ཁོ་ན་2 ཞེས་པ་གང་གིས་ནི་, གྲངས་ངེས་བ་བསྟན་ ནོ། །དེ་ལྟར་ཡིན་བ་ཡང་, སངས་རྒྱས་པ་རྣམས་ཀྱི་ (ལུགས་ལ་)ཚད་མ་ ལ་གཉིས་ཁོ་ན་སྟེ། མངོན་སུམ་དང་, རྗེས་སུ་དབག་པའོ།། गाय का है, 2 (मा) F6:5851 བའི་ཕྱིར་རོ།། ཁོངས་སུ་བསྡུ་ཚུལ་ཡང་, ཚད་མ་ཀུན་ལས་བཏུས་བ་ལ་ སོགས་བ་རྣམས་སུ་གླེང་ཟིན་པའི་ཕྱིར། འདིར་རྒྱས་པར་མི་བྱེད་དོ།། प्रत्यक्षमनुमानं च प्रमाणे लक्षणद्वयम् / प्रमेयं तत्र सन्धाने न प्रमाणान्तरं न च // 1 / 2 / प्रत्य.। . पुनः पुनरभिज्ञानेऽनिष्टासक्तः स्मृतादिवत् / - 1 // 3 // प्रत्य.। . प्रत्यक्षमनुमानं च प्रमाणे लक्षणद्वयं प्रमेयम्, इत्याख्याय तस्य सन्धाने न प्रमाणान्तरं न च पुनः पुनरभिज्ञानेऽनिष्टासक्तः स्मृतादिवद्, इति / स्ववृत्तिः // “न च पुनःपुनरभिज्ञानेऽनि ष्टासक्तः स्मृतादिवत् / प्र. वा. अलंकार पृष्ठ 242 / 2) मालपणी गरिमा गोमा मानं द्विविधं विषय विध्यात्; प्र.वा.प्रत्यः-१।। मिलेग'5-रोम मरेगा = मेयं त्वेकं स्वलक्षणम् // प्र.वा.२।५३। 3) असम मोरे यसो :- यत् तहीदमनित्यादिभिराकरवं र्णादि गृह्यतेऽसकृद्वा तत्र कथम् तद् हणमस्ति, अपितु तत्र सन्धाने न प्रमाणान्तरम्, " / इत्यादि (प्र.स्ववृत्ति / 1 / 12,1).