________________ 182 302) पञ्च कर्माणि / - तद्यथा- उत्क्षेपणम्- अवक्षेपणम्- आकुञ्चनम्-प्रसा___ रणम्- गमनम् इति कर्माणि / ལས་རྣམས་ནི་ (རྣམ་པ་ལྔའོ། འདི་ལྟ་སྟེ། གྱེན་དུ་འཕེན་པ་ ཐུར་དུ་འཕེན་བ་ སྐུམ་བ་ སྤེལ་བ(འཕེལ་བར་བྱ་བ) འགྲོ་བ་ཞེས་བྱ་བ་སྟེ་ ལས་རྣམས་སོ། / 303) गम्नग्रहणाद् भ्रमणरेचनस्पन्दमाधवरोधः / माम (लामा) () AN, २मा 18. रेहा པ་དང་ གཡོ་བར་བྱེད་པ་ལ་སོགས་པ་དང་ བཀག་པ་ (རྣམས་གོ་བར་བྱ) འ། 304) सामान्यं द्विविधं परमपरञ्चेतिर / तत्र परं सात्ता 'भावो' महासामान्य- मिति चौच्यते / अपरं द्रव्यत्वादि / तत्र सत्ता द्रव्यगुणकर्मभ्योऽथान्तरम् / སྤྱི་ནི་རྣམ་པ་གཉིས་ཏེ། གཞན་དང་གཞན་མ་ཡིན་པ་ཞེས་བྱ་བའོ།། रेम मालमये, अब समय (पेकर, ब) में ཞེས་བརྗོད་ (བ་དེ་ཉིད་)དོ། །གཞན་མ་ཡིན་པ་ནི་, ་རྫས་ཉིད་ལ་སོགས་ 1) उत्क्षेपणमवक्षेपणमाकुंचनं प्रसारणं गमनमिति कर्माणि-१।१।६। वै.। संयोगभिन्नत्वे सति संयोगासमवायिकारणत्वं-कर्मत्व जातिमत्वं वा कर्मसामान्यलक्षणम् / / तत्रैव द्रष्टव्यम् // 2) "सामान्यं विशेष इति बुद्धि-अपेक्षम्"-वं. सू. 1 / 2 / 3 / “सामान्यं द्विविधं परमपरं च / तत्र परं सत्ता / अपरं सत्ताव्याप्यं द्रव्यत्वादि" (उपस्कर-वै. भ. 1 / 2 / 3 / ) 'परसामान्य को वैशेषिक-सत्ता, भाव, महासामान्य, कहते है / "भावः सामान्यमेव" वै. सू. 1 / 2 / 4 / "मावः सत्ती सामान्यमेव चन्द्र. वृ. 12214 / सत्ता भावी महासामान्यमिति चोच्यते - * मणिभद्र व. . -.. 3) "द्रव्यगुणकर्मभ्योऽर्थान्तरं सत्ता" वै. सू. 1 / 22 / द्रष्टव्य तयचक्रवृत्ति-पृ. 6 //