________________ 71 80) "पक्षहेतुदृष्टान्तवचने हि प्राश्निकानामप्रतीतोऽर्थः प्रतिपाद्यते इति // " माप, मामा मामला, डोर རྒོལ་བ་རྣམས་ཀྱི་1མ་རྟོགས་བའི་དོན་རབ་ཏུ་རྟོགས་བར་བྱེད་བའི་ཕྱིར་རོ། / खेलमा" 81) अस्य गमनिका; पच्यते इति पक्षः / हिनोतीति हेतुः / 'हि' गतो / सर्वे गत्याः ज्ञानाथाः तथा दृष्टमर्थमन्तं नयतीति दृष्टान्तः / स च द्विधा साधर्म्यवधर्म्यभेदात् / 13. (६मा मी) मा (1) / अ पा 44, माया' | गायर पार', 'ग' खेसा / (प) 6. 5(- 1257. अष्टा. गणपाठ, पृ. 256) / 1)འདིར་རྒོལ་བ་རྣམས་ཀྱིས་ཞིབ་བོ ད་བསྒྱུར་ལྔ་མ་རྣམས་བྱེད་པ་བྱུང་བ་ནི; མ་དག་བར་མངོན་ཏེ་ བོག་ཏ་འདི་འབྲེལ་སྒྲ་ཡིན་པའི་ཚུལ་རྩོད་སློང་དང་བཅས་ཏེ་བྱང་བའི་ཕྱིར་རོ། - / 2) पच्यते (पंचयते) इतिपक्षः, यह पक्ष सम्बन्धी व्युत्पति एवं भेद पहले ही कहा जा चुका ___ है, द्रष्टव्य-वृत्ति- 65, के सम्बन्ध में। ... 3) यहां 'हेतु' शब्द- 'हि' धातो 'तुन' प्रत्ययतः सम्पादित है। 'हि' धातु का अर्थ-'गति' एवं 'वृद्धि' दोनों होता है, पर यहाँ साधनार्थ मे 'तुन्' प्रत्ययेन सम्पादित हेतु के 'हि' का अर्थ ' 'गति' है। "हि गतो वृद्धौ च"-पाणि. अष्टा. गणपाठ-पृ. 256, धातु सं. 1257; . द्रष्टव्य / सिद्धान्त को. पृ. 266, गण. स्वादि। जो गत्यर्थक हैं, वे सब ज्ञानार्थक भी होते हैं / अतः जो 'गमक' अर्थक है, वही ज्ञापकार्थक भी होता है। इस दृष्टि से यहाँ 'हि' 'ज्ञापक' अर्थ मे प्रयुक्त है। 4) ' मम'; अ म रपुमो -"पक्ष' परिग्रहे"- ' ཡོངས་སུ་འཛིན་བ་གན”- ཤོས་སོགས་ནི་གང་བས་འཇིགས་ཏེ་མ་བྲིས་ན; བརྡ་སྤྲོད་པའི་གཞུང་དྭང་ སྦྱར་བའི་བཤད་བ་ གཞན་དུ་འིས་བར་བྱའོ།། 5) मेर -का-ममबार मधुरय-25= हेतुः" मम "पा के माम;