________________ 59 གྱུར་པའི་སེམས་ཅན་རྗེས་སུ་འཛིན་བྱེད་བ།། དེ་ནི་རིང་མིན་ཞི་བ་ཐོབ་པར་འགྱུར༎ (ཞེས)གསུངས་བས་སོ། 58) अलर विस्तरेण // རྒྱས་བར་བཤད་ཟིན་ཏོ།། 56) 'इति शास्त्रसंग्रहः। इतिशब्दः परिसमाप्तिवाचकः / एतावानेव / བཞེས་བ་(འདི་རྣམས་ནི) བསྟན་བཅོས་ཀྱི་དོན་བསྡུས་བའོ།། ___ खेला' (प)- खेसाई, पागाका माई བྱེད་ཉིད་དེ། འདི་ཙམ་ཙཞིག་གོ་ཞེས་བའོ།། 60) शिष्यतेऽनेन तत्त्वमिति शास्त्रमधिकृतमेव / अयं (VI-य) त५ इत्यर्थः / शास्त्रस्यार्थः शास्त्रार्थः / तस्य संग्रहः शास्त्रार्थसंग्रहः। 1) यह मत प्रायः सभी भारतीय मुक्ति वादी विचार परम्परा में पाया जाता है - "प्रमाण. प्रमेय तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसाधिगमः" न्या. सू. 13131 // , तदिदं तत्त्वज्ञानं निःश्रेयसाधि- गमश्च (गमार्थ इत्यादिपाठः) यथाविधं वेदितव्यम्-न्या. भाष्य. १।१।१,पृ. 5. मिथिला. विद्यापीठतः प्रकाशितम् // 2) कः पुनः परमार्थ? "विप्रतिपन्नपुरुषप्रतिपादकत्वम्"-न्याय. वा. 1 / 1 / 1 // पृ० 17. मि.॥ 3) 'एतावानेव' = इत्यपरिमाणोऽष्टपदार्थप्रतिपादकः, इत्यर्थः(द्रष्टव्य पं. पृ. 42.) / / 4) गोगाम में 97 मप); मम 5) यहां "अयंते" यह पाठ कोष्ठक में यद्यपि सम्भावित सत्यता के रूपमें रखा गया है, परन्तु 'अर्यते' ही शुद्ध पाठ प्रतीत होता है। 'अर्यते = गम्यते" के अर्थ में है / अयंते गम्यते उच्यते इत्यर्थः / (न्या. पृ० पं. 42) /