________________ महोपाध्यायश्रीयशोविजयगणिविरचिता [ अष्टमः सर्गः हृष्टा कामलता बाढं चिन्तासन्तापशान्तितः / प्रीतो लवलिकादिश्च परिवारोऽखिलस्तदा // 140 // अहं मदनमञ्जर्या रत्नपूगाढ्यया तया / शोभा रविरिव प्राप्तो धामाढयदिवसश्रिया // 141 // अत्रान्तरे महामेघनिकुरम्बमिवाग्रतः / विद्याधरबलं दूरादागच्छद् व्योम्नि वीक्षितम् // 142 // कुन्त-तूणीर-चक्रा-सि-शक्ति-नाराच-तोमरैः / शूल प्रास-धनु-दण्ड-गदाभिश्च भयानकम् // 143 // सिंहनादमहो कृष्टिद्मनैर्मुखरिताम्बरम् / कृताद्भुतं महायोधैमूतः शौर्यरसैरिव // 144 // स्मयमानमिव प्रेकप्रभाजालैमदोद्धरम् / तत्क्षणेनाऽऽगतं पार्श्वे दृष्टमस्माभिरुन्मुखैः // 145 // ततो विद्याधरान् प्राह स्वकीयान् कनकोदरः / सज्जीभवत सर्वेऽपि चटुलोक्तमभूत् स्फुटम् // 146 / / मण्डपाद् मामसम्भाष्य पूर्व ये निर्गता रुषा / ज्ञात्वाऽऽगता सुतां दत्तां किञ्चिदालोच्य ते मिथः // 147|| इदमेषामभिप्रेतं यदयं गुणधारणः / हीनो न भूचरोऽस्मत्तः कन्यां स्वीकर्तुमर्हति // 148 // खगानिव खगानेतान् भूचरस्योपजीविनः / निरस्य मानमेतेषां तद् यूयं हन्तुमर्हथ // 149 // आकर्ण्य रणकण्डलभुजास्तत स्वामिनो वचः / नभश्चरा उत्पतितुं भूयिष्ठास्ते प्रचक्रमुः // 15 // अत्रान्तरे मयाऽचिन्ति चारु नेदमजायत / यतोऽत्र प्रलयोऽमीषां मम हेतोर्भविष्यति // 151 // स्तम्भितं तद् बलद्वन्द्वं तदानीमेव केनचित् / उत्ताननेत्रमूर्द्धधश्चित्रन्यस्तमिव स्थितम् // 152 // निर्व्यापार निराटोपं ददृशे तद् बलद्वयम् / मनःखेदात् कुमारस्य द्विधाभूतमिवाम्बरम् // 153 // तेषामथ नभःस्थानामहं दग्गोचरं गतः / सार्धं मदनमञ्जर्या निविष्टो विष्टरे सुखम् / / 154 // ततो मां प्रेक्ष्य तैातमहो! रूपमहो ! गुणाः / अहो ! नरोत्तमस्याऽस्य माहात्म्यं वाक्पथातिगम् // 155 // अहो! मदनमञ्जर्याः सुसमीक्षितकारिता / वृत्तोऽयमीदृशो भर्ता यया सौभाग्यभाग्यभूः // 156 // अनेन स्तम्भिता नूनं वयं स्वोयेन तेजसा / सह मित्रेण पन्या च स्वयं यन्मुत्कलोऽस्त्ययम् // 157|| तद् दुष्टुकृतमस्माभिरीदृशो यन्नरोत्तमः / जिघांसित इतो जाड्यात् स्तम्भोऽस्माकं न नोचितः // 158 // अतः परमयं स्वामी वयं चास्य पदातयः / ध्यायन्त इति ते चित्ते केनचिन्मुत्कलीकृताः // 159 // लग्ना नभश्चरास्तूर्णमागत्य मम पादयोः / रणार्थः पर्यवसितस्तदुत्साहो मम स्तवे // 160 // उक्तस्तैरहमस्माकं क्षन्तव्यं दुष्कृतं त्वया / वयं जाता गुणक्रीता नाथ! भृत्यास्तवाधुना // 161 // ततोऽभूत् तेषु कनकोदरो विगतमत्सरः / जातश्च मुत्कलः सर्वैरन्योन्यं क्षमितं ततः // 162 // सर्वे प्रमुदिता जाताः खेचरा बान्धवाधिकाः / तदाकागतस्तत्र पिता मे मधुवारणः // 163 // अम्बा चान्तःपुरैः सा शेषा अप्यागता जनाः / ततः पितृपदद्वन्द्वं मयाऽन्यैश्च नृपैर्नतम् // 164 // समं मदनमञ्जर्या माताऽपि प्रणता मया / अन्येऽपि लोका विधिना यथार्ह बहुमानिताः // 16 // आलिङ्गितोऽहं तातेन हर्षाश्रुप्लुतचक्षुषा / कुलन्धरेण वृत्तान्तः सर्वोऽप्यस्मै निवेदितः // 166|| सर्वेऽपि खेचराः प्रोचुस्तातस्याग्रे सुतस्तव / धन्योऽयं वरवीर्योऽयं पूताऽनेन वसुन्धरा // 167 / / अयं जीवितदोऽस्माकं देवोऽयं गुरुरेष नः / इत्यम्बरचरस्तुत्या मुदितौ पितरौ मम // 168 // 1. लमास्ते खेचरास्तूर्ण // 2. वार्ता श्रुत्वाऽऽगतस्तत्र ता राजा मधुवारणः // 3. तात //