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________________ 54 सिरिमहानिसीहसुससंदभो। [प्राकृत एवं चाभिग्गहबंधं काऊणं जावज्जीवाए, ताहे य गोयमा ! इमाए चेव विज्जाए अहिमंतियाओ सत्तैगंधमुट्ठीओ तस्सुत्तमंगे नित्थारगपारगो भवेज्जासि त्ति उच्चारेमाणेणं गुरुणा खेत्तव्वाओ "अउम् णमउ भगवओ अरहओ स्इ उ म्ए भगवती महाविआ ईरए महआईएँ जयए ईरए स्एणव्ईए वद्धम्आणव्ईरए जय्ए व्इजयए जय्अंत्ए अपआइए स्व् आ हा // " 5 उपचारो चउत्थभत्तेणं साहिज्जइ, एयौए विजाए सव्वगओ नित्थारगपारगो होइ, उट्ठावणाए वा गणिस्स वा अणुन्नाए वा सत्तवार परिजवेयव्वा / नित्थारगपारगो होइ, उत्तमट्ठपडिवण्णे वा अभिमंतिज्जइ आराहगो भवइ, विग्धविणायगा उवसमंति, सूरो संगामे पविसंतो अपराजिओ भैवइ, कप्पसमत्तीए मंगलवहणी खेमवहणी हवइ / तहा साहुसाढणीसमणोवासगसड्डिगासेसासन्नसाहम्मियजणचउव्विहेणंपि समणसंघेणंः निथारग10 पारगो भवेजा, धन्नो सुपुन्नसलक्खणोऽसि तुमं ति उच्चारेमाणेणं गंधमुट्ठीओ घेखे]त्तव्वाओ, तओ जगगुरूणं जिणिंदाणं पूएगदेसाओ गंधड्ढामिलाणसियमल्लदामं गहाय सहत्थेणोभयखंधेसुमारोवयमाणेणं गुरुणा __ हे गौतम ! आ प्रकारे यावज्जीवपर्यंत अभिग्रहनो नियम लईने आ (नीचे आपेली) विद्याथी सारी रीते मंत्रेली गंध ( वासक्षेप ) नी सात मूठीओ उपधान करनारना मस्तक उपर 'तुं संसारसमुद्रने तरीने पार था' ए प्रकारे उच्चारण करवापूर्वक (ते मूठीओ) नाखवी जोईए। 15 ए विद्या आ प्रकारे छे "ॐ नमो भगवओ अरहओ सिज्झउ मे भगवती महाविजा, वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जये विजये जयंते अपराजिते स्वाहा // ". .. ___ आ मंत्रनो प्रयोग चतुर्थभक्त-एक उपवास करीने करवो जोईए / आ विद्याथी सर्वज्ञ तथा संसारपारगामी थवाय छ। वडी दीक्षामां अथवा गणिपदनी अनुज्ञामां आ विद्याने सात 20 वार भणवी तेथी संसारपारगामी थवाय छे, अथवा मरण वखते, अंतिम अनशनवेळाए जे आ मंत्रने भणे ते आराधक बने छ / तेनां विघ्नकारक तत्त्वो शांत थाय छे। शूरवीर माणस जो संग्राम-युद्धमा प्रवेश करे तो ते अपराजित थाय छे / कल्पनी समाप्तिमां (आ विद्या) मंगल आपनारी अने सुख देनारी बने छ। तेमज साधु, साध्वी, श्रमणोपासक तथा श्राविकाओ रूप ज़े समग्र साधर्मिक चतुर्विध 25 जैनसंघ हाजर होय ते साथे श्रमणसंघे पण 'नित्थारग-पारगो भवेजा (संसारना समुद्रने तमे तरी जाओ), तेमज तमे धन्य छो, पुण्यशाळी लक्षणवाळा छो' ए प्रकारे उच्चारण करी, वासक्षेप लईने नाखवो / ते पछी जगतना गुरु एवा जिनेश्वर भगवंतनी पूजामांथी गुरु अत्यंत सुगंधी करमायेली न होय एवी श्वेत पुष्पोनी माला ग्रहण करी पोताना हाथ वडे तेने बने खभे आरोपण 1. जावजीवाए A / 2. याउ स A / 3. सव्वगंधसुद्धीओ P / 4. नित्थारपारगो P / 5. णा घेत्त P / 6. उ स् ए P / 7. ए जय P / 8. आणाव P / 9. जय अंतए P / 10. आईए P / 11. एगाए / 12. उत्तिमट्ट P / 13. भवति / / 14. हुणिस P / 15. स्थारपा / 16. धण्णो संपुण्ण स° PM
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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