________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 473 सिरिविमलसामिपमुहाहिट्ठायग-सयलदेव-देवीणं / सुहगुरुमुहाओं जणिअ ताण पयाणं कुणह झाणं // 204 // 14 // व्याख्या-श्रीविमलस्वामीति नाम्ना सौधर्मदेवलोकवासी श्रीसिद्धचक्रस्याधिष्ठायकः तत्प्रमुखा येऽधिष्ठायका सकलाः- समस्ता देवा देव्यश्चक्रेश्वर्याद्याः तासां ध्यानं सुगुरुमुखात् ज्ञात्वा 'ताण' त्ति तत्सम्बन्धिनां ‘पयाणं' ति मन्त्रपदानां ध्यानं यूयं कुरुत, एतेषां नामानि कलशाकारस्योपरि सर्वतो लिखेत् / 'ॐ ह्रीँ विमलस्वामिने नमः' इत्यादि लिखेदित्यर्थः // 204 // (14) .. तं विजादेवि-सासणसुर-सासणदेविसेविअदुपासं। मूलगह कंठणिहिं चउपडिहारं च चउवीरं // 205 // 15 // दिसिवाल-खित्तवालेहिं सेविसं धरणिमंडलपइहें। पूयंताण नराणं नूणं पूरेइ मणइ8 // 206 // 16 // 10 व्याख्या-अथ तमित्यादि गाथायुग्मस्य व्याख्या, तत् सिद्धचक्रं कर्तृ पूजयतां नराणां नूनंनिश्चितं मन इष्टं - मनसोऽभीष्टं पूरयति, इति द्वितीयगाथान्त्यपादद्वयेन सम्बन्धः, किंविशिष्टं तत् ? - विद्यादेव्यो-रोहिण्याद्याः षोडश, शासनसुरा गोमुखयक्षादयश्चतुर्विंशतिः, शासनदेव्यश्चक्रेश्वर्याद्याः चतुर्विंशतिरेव, ततो, विद्यादेवीभिः शासनसुरैः शासनदेवीभिश्च सेवितौ द्वौ पाचौं वामदक्षिणौ यस्य तत् / पुनः कीदृशम् ? - 'मूलगहं' ति मूले - कलशस्य मूले ग्रहाः- सूर्यादयो यस्य तत् , तथा कण्ठे-15 गलस्थाने निधयो नवसङ्ख्याका नैसर्पकाद्या आगमप्रसिद्धा यस्य तत् , तद् यथा - .. " नैसर्पः 1, पाण्डुकश्चाथ 2, पिङ्गलः 3, सर्व्वरलकः 4 / महापद्मः 5, काल 6, - महाकालौ 7, माणव 8 - शङ्खको 9 // 1 // " विमलखामी वगेरे ( सौधर्मदेवलोकवासी सिद्धचक्र यंत्रना) अधिष्ठायक देवो अने देवीओ ( चक्रेश्वरी वगेरे )ना ध्यान (माटेर्नु आलेखन) गुरुमुखथी सांभळीने करवू अने ते संबंधी 20 मंत्रपदोनुं ध्यान (आलेखन ) करवू / (ते आ प्रकारे 1. ॐ ह्रीँ विमलवाहनाय नमः।- 2. ॐ ह्रीँ चक्रेश्वर्यै नमः / 3. ॐ ह्रीँ अप्रसिद्धाधिष्ठायकाय नमः। 4. ॐ ह्रीँ गणिपिटकयक्षराजाय नमः। 5. ॐ ह्रीँ धरणेन्द्राय नमः। 6. ॐ ह्रीँ कपर्दियक्षाय नमः। 7. ॐ ह्रीँ शारदायै नमः। 8. ॐ ह्रीँ शान्तिदेवतायै नमः। - 25 9. ॐ ह्रीं अप्रतिचक्रायै नमः। 10. ॐ ह्रीँ ज्वालामालिन्यै नमः। 11. ॐ ह्रीँ त्रिभुवनस्वामिन्यै नमः। 12. ॐ ह्रीँ देवतायै नमः। 13. ॐ हाँ वैरोट्यायै नमः। 14. ॐ ह्रीँ पद्मावत्यै नमः। 15. ॐ ह्रीँ कुरुकुल्लायै नमः। 16. ॐ ह्रीँ अंबिकायै नमः। 17. ॐ ह्रीँ कुबेरदेवतायै नमः। 18. ॐ ह्रीँ कुलदेवतायै नमः // 204 // (14) 30 ते सिद्धचक्र पूजन करनारा मनुष्योनां मनोवांछितो पूरा करे छे, ते विद्यादेवीओ (रोहिणी वगैरे सोळ वलयाकारे) अने शासनदेवो ( गोमुख वगेरे चोवीश यक्षो) तेमज शासनदेवीओ वडे सेवायेलुं छे। (चक्रेश्वरी वगेरे चोवीश यक्षिणीओ एकज वलयमा बे पडखे ) लखवी /