________________ 462 सिरिदेवभहसूरिश्य कहारयणकोस'संदभो। [प्राकृत सेट्ठिसुएण भणियं—पल्लिनाह ! अलमलं पसंभमेण, न बज्झोवगरणमवेक्खइ एस दोसु त्ति। पारद्धो पंचनमोक्कारं जविउं। कहं चिय? निप्पंदतारलोयणनासग्गोलग्गथिमियपम्हउडं / उदरविचरंतनिब्भरकुम्भयपवमाणवावारं // 1 // नियनियविसयञ्चासंगविरयसमरसियइंदियग्गामं / पंचपरमेट्ठिसुमरणसमकालुच्छलियगुरुनायं // 2 // एकेकऽक्खरससहरझरंतपीऊसपवहपभारं / निव्वविउमुट्ठियं पिव तिहुयणदुहनिवहहव्यवहं // 3 // पसरंतररलक्खाइरेगपप्फुरियफारपहचकं / दूरोसारियजणपचणीयभूयाइदुट्ठगणं // 4 // इय जाव जवइ जोगि व्व निच्चलो निब्भओ निरासंको / पंचपरमेट्ठिमंतं स महप्पाऽणप्पमाहप्पं // 5 // ताव अयंडविहंडियभंडऽप्फुडणरवसमइरेगं / रसियं काउं भूओ दूरीहुओ सुयाहिंतो // 6 // (- 'कहारयणकोसो' सामन्नगुणाहिगारो कथानक 17 मुं पृ. 130 अ) 15 . 20 शेठनो छोकरो बोल्यो : हे पल्लीनाथ ! गभराओ नहीं, वळगाडनो दोष काढवा माटे कोई बहारनी सामग्रीनी जरूर नथी। एम कही शेठनो छोकरो नवकारमंत्रनो जाप करवा लाग्यो / ते केवी रीते? ते जप वखते तेनी आंखोनी कीकीओ निश्चल हती अने आंखोनी पांपणो नासिकाना अग्रभाग तरफ ढळेली हती। उदरमा संचरता पवनना व्यापारनो तेणे केवळ-कुंभकवडे निरोध को हतो। तेनो इंद्रियसमूह पोतपोताना विषयोमांनी अत्यासक्तिथी विराम पामीने शांत बन्यो हतो। पांच परमेष्ठिओनुं स्मरण करतांनी साथे ज गंभीर महानाद उत्पन्न थयो। नमस्कारमंत्रनो एकेक अक्षर चंद्रमा जेवो होईने तेमांथी अमृतनो विशाळ प्रवाह वही रह्यो हतो। ए प्रवाह जाणे त्रणे लोकना दुःखसमूहरूप दावानळने बूझववा 25 माटे उत्थित थयो न होय! लाखो सूर्योनी प्रभा करतां पण अधिक देदीप्यमान प्रभानो पुंज (चक्र) जेमांथी फेलाई रह्यो छे अने जेना वडे लोकना प्रत्यनीक एवा भूतादिदुष्टोना समूह दूर कराया छे, एवा महान प्रभावशाळी पंचपरमेष्ठीमंत्रने योगीनी जेम निश्चळ, निर्भय अने निःशंक बनेलो ते जपे छे के तरत ज अकस्मात् विनाश (प्रलय) कालीन ब्रह्मांडना ध्वनिथी पण अधिक ध्वनिवाळी चीस पाडतो ते भूत. श्रेष्ठीपुत्रथी दूर भागी गयो।