________________ 402 [प्राकृत पंचपरमिट्टिनमुक्कारमहथुत्तं / अथ प्रस्तारमाह अणुपुब्विभंगहिट्ठा जिहँ ठविअग्गओ उवरि सरिसं / पुचि जिट्ठाइकमा सेसे मुत्तुं समयमेयं // 7 // - व्याख्या-आनुपूर्वीभङ्गस्य पूर्वन्यस्तस्योपलक्षणत्वादनानुपूर्वीभङ्गस्यापि पूर्वन्यस्तस्याधस्ताद् 5 द्वितीयपसावित्यर्थः / ज्येष्ठं सर्वप्रथमं अङ्कम् , स्थापय इति क्रिया सर्वत्र योज्या। तथाऽप्रतः, उपरीतिउपरितनपतिसदृशमङ्कराशिमिति गम्यम् ; स्थापय / तथा पूर्वमिति यत्र ज्येष्ठः स्थापितस्ततः पूर्वभागे वि०-आ संख्या केवी रीते प्राप्त थाय छे ते समजी लईए / नव सुधीनी संख्याना भंग काढवा होय तो प्रथम 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, ९-ए रीते अंक लखवा। तेना गणो नीचे प्रमाणे बनशेगण संख्या गुणनसंख्या 10 एक 1 1= द्विक 12 142= त्रिक 123 14243= चतुष्क 1 2 3 4 1424344 %3 पंचक 1 2 3 4 5. 142434445= 120 15 षट्क 1 2 3 4 5 6 14243444546= 720 सप्तक 1 2 3 4 5 6 7 1424344454647% 5040 अष्टक 1 2 3 4 5 6 7 8 142434445464748= 40320 नवक 1 2 3 4 5 6 7 8 9 14243444546474849% 362880 तेनुं गुणन करतां ऊपर प्रमाणे फळ आवशे; ते दरेक गणनी भंगसंख्या ऊपर आपेली गुणन20 संख्या मुजब जाणवी // 3-5 // श०-आ भंगो पैकी प्रथम भंगसंख्याने 'आनुपूर्वी' छेल्ली भंगसंख्याने 'पश्चानुपूर्वी अने बाकीनी वचली भंगसंख्याओने 'अनानुपूर्वी' जाणवी // 6 // वि०-अहीं गणितनी जे परिभाषा समजावी छे ते नीचेनां दृष्टांतथी बराबर समजाशे। पंचक गणनो प्रस्तार करीए तो 120 भंग नीचे मुजब उपर्युक्त कोष्ठक छे (कोष्ठक मूलमा आप्यु 25 छे ते प्रमाणे अहीं समजी लेईं।)॥ 6 // उपर्युक्त कोष्टकमी प्रथम संख्या 12345 छे तेने 'आनुपूर्वी' कहेवामां आवे छे। छेली संख्या 54321 छे तेने 'पश्चानुपूर्वी' कहेवामां आवे छे अने 21345 थी 45321 सुधीनी वचली 118 संख्याओने 'अनानुपूर्वी' कहेवामां आवे छे। आ संख्याओ केवी रीते बनाववी तेनी प्रक्रिया हवे पछीनी गाथाओमा दर्शावी छ / . श०-आनुपूर्वी भांगानी नीचे आगली पंक्तिमा ज्येष्ठ अंकनी स्थापना करो। आगळ 30 उपर समान अंकनी स्थापना करो अने समयभेद (जेनी व्याख्या आगळ आवशे तेने) छोडीने बाकीना अंकोने क्रमथी पहेला मूको (एटले अनानुपूर्वीनी संख्या तैयार थशे) // 7 // 1 पूर्व न्य। 2 पूर्व न्य° 1 3deg; प्रथमं /