________________ [प्राकृत नमस्कारव्याख्यानटीका। हेम ग. 1, तार ग. 3, रस 16, पीठी शुद्ध शुल्व ग. 12 पत्राणि लेप्यं पुटेत् तुलनु पुटम् // अथ पञ्चामृतरसः कृतलोहस्य भागाष्टौ, गन्धकामृतपूषणम् / अमृताभ्रस्य वाष्टौ, चूर्णमेकत्र कारयेत् // 1 // .................. काचकुम्पे दिनद्वयम् // 2 // पचितं वालुकायन्त्रे, वह्निचूर्ण रसायनम् / गुञ्जामात्रं ततो वृद्ध्या, देयं कृशेत्कये शुभम् // 3 // गौडे कसी च वालाके लताकसीचकाजुषः / सौराष्ट्रायां अगिनु, अर्बुदविषये कौङ्कणे अलिन्तु (?) // 4 // राजचम्पं तथा चाम्लपत्राणि सदृशानि च / तेषां रसेन संभाव्य, लोहचारितरं भवेत् // 5 // षष्टितन्दुलसंमिश्रं, मीमाख्यो(ख्य)रसमारितम् / लोहपत्रैस्तथा हंसगन्धकैर्मुनिसंयुतः॥६॥ स्त्रीपुष्पैः सप्तवारांश्च, सरपुङ्खारसैः पुनः। सजलनालिकेरे सूक्ष्मं दिनान्येकविंशतिः // 7 // आमलकरसं मध्ये, तापेऽवधारयेत् ततः। गलायतुं कवालयेत् , मधुना वालतुर्यकाम् // 8 // विविधं गगमृमभक्षं, कीटं च काचपत्रं करोति / विकृति कीटं तु ग्लानुदं तथा काचम् (?) // 9 // कृष्णा_ हूतहारसेन सप्तभावितम् / सटङ्कणं धमेत् खोटं काटं वर्गधकेन तु // 10 // पुनर्धर्मे भवेद् भस्म, मृतं च रसायनम् / कृष्णाभ्रताम्हि भस्मं च, गन्धकरसकजली // 11 // शुल्वचूर्णे समं सर्वे, मर्दितं त्रिफलाजलैः। वालुकायत्रके पक्वं, यामाष्टौ सर्वरोगहम् // 12 // पञ्चामृतं रसं देयं, शुद्धं चटितमातृकम् / रसस्य त्रिगुणं गन्धकजली भावयेत् ततः॥ 13 // मीणारञ्जमहूसारकम्बीरछुण्ढिबीजकैः / . पानाकाय फलव्योषदेवफलैस्तु सप्तधा // 14 // सैकोत्तरे पलाकत्रिभागमेकत्र कारयेत् / भैरवः सन्निपातेषु, रसः कपालवातजैः // 15 // दोषस्य निग्रहे नाशो राताष (?) देयो ज्ञात्वाऽनुमानतः / / काचतुरनन्तरं वा. 4, ततो जलं करणीयम् , पथ्ये साकर करंबउ देयः // इति रसायनं समाप्तम् // तिहुयणसामिणिविजा महमंतो मूलमंत-तत्ततियं / इत्थ ठियं पि न नजइ गुरूवएसं विणा सम्मं // 26 // [30] .