________________ नमस्कार स्वाध्याय / निमित्तमाह नंदा तिहि अरहंता भद्दा सिद्धा य सूरिणो य जया / तिहि रित्ता उवज्झाया पुण्णा साहू सुहं दितु // 7 // [17] इति तिथयः॥ ससि-मंगलमरहंता बुहो य सिद्धा य सुरगुरू सूरी। सुक्को उवज्झाय पुणो साहू मंदो सुहं भाणू // 8 // [18] _ इति ग्रहाः // कत्तिय-चित्तो अरिहा वइसाहो मग्गमास सिद्धा य / पोसो जिट्ठो भद्दव आसोओं सरिणो सुहया // 19 // माहासाढुज्झाया फग्गुणमासो य सावणो साहू / मह मंगलमरिहंता अचिंतचिंतामणी दिंतु // 20 // इति मासाः॥ जपमानस्य सर्वे शुभाः। तथा चिन्तामणिरचिन्तितपदार्थान् साधयति, अत एव निमित्तं प्रतिपादितम्॥ पुअसंगमूल अरिहंता तहा धनिट्ठाइ पंचगा सिद्धा। दिगुरिक्खा आयरिया नमामि सिरसा य भत्तीए // 21 // अदाइ जे रिक्खा उवज्झाया तेसि दितु फलनिवहं / चित्ता साई साहू सासयसुक्खं महं दितु // 22 // इति नक्षत्राणि // पञ्चपरमेष्ठिनः शाश्वतं मम सौख्यं ददतु / इहलोके यावज्जीवंताया (?) नक्षत्रैः निमित्तम् // जमु कन्ना-विस अरिहा मेसो मयरो य अंतिणो सिद्धा। पंचाणण अलि सूरी धणू य मिहुणो उवज्झाया // 23 // कक्कड-तुला य साहू दोदह रासी य पंचपरमिट्ठी। भावेणं थुणमाणो पावइ सुक्खं च मुक्खं च // 24 // इति राशिभिः परमेष्ठिनः शाश्वतं निरन्तरं दिने दिने द्वादशलमानि, यतः अन्तःसौख्यं ददति यावन्मोक्षम् // अथ निमित्तं यथा ज्ञायते, तद् ब्रूमः-निमित्तं त्रिधा–पञ्चस्वरोदयम् 1, ध्वजादिनाऽष्टाङ्गम् 2, ग्रहगणितं च 3 / पञ्चस्वरोदयं तावत् अकारादि स्वराः पञ्च, नन्दादिस्तिथयस्तथा / उदयन्ति क्रमादेवं, पक्षे पक्षे त्रिधा त्रिधा // 1 // अहोरात्रस्य मध्ये तु, रविनाडीप्रमाणतः। एकैकस्योदयं प्रोक्तं, स्वराणां पञ्चधा तथा // 2 // षडूर्वाः स्थापयेद् रेखाः, पञ्चविंशच्च कोष्ठकाः। अकारादि-हकारान्ताः, हीनाङ्गास्त्रीणि वर्जीताः // 3 // वर्षो मासस्तिथिर्वारो, नक्षत्रमक्षरस्वरः / राशिष्वेकादिकैः स्थानः, फलं पुंसां तथा दिशेत् // 4 // 25