________________ जमार स्वाध्याय 04 [प्राकृत विभाग] जेणं एस पंचमंगलमहासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरोववत्ती तिलतेलकमलमयरंद व्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव......। [जेम तलमां तेल, कमलमां मकरंद अथवा सर्वलोकमां पंचास्तिकाय व्याप्त छ तेम आ पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध सकल आगमोमां व्याप्त छे।। -श्रीमहानिशीथसूत्र, न. स्वा. पृ. 41. अनुवादको : पंन्यास श्री धुरंधरविजयजी गणिवर्य मुनिवर्य श्री जंबूविजयजी . मुनिवर्य श्री तत्त्वानंदविजयजी संशोधक: मुनिवर्य श्री तत्त्वानंदविजयजी प्रयोजक : अमृतलाल कालिदास दोशी, बी. ए. प्रकाशक: जैन साहित्य विकास मण्डल, बम्बई 57