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________________ णमोकारणिज्जुत्ती। [प्राकृत पुव्वाणुपुव्वि न कमो नेव य पच्छाणुपुबि एस भवे / सिद्धाईआ पढमा बीआए साहुणो आई // 134 // 1020 // छे, जे केवलीओ छे; केटलाक आचार्यो छे, जेओ सूत्र अने अर्थना जाणकारो छे; केटलाक उपाध्यायो छे, जेओ सूत्रने जाणे छे; केटलाक एमनाथी भिन्न साधुओ छे, ते बंधा कंई अरिहतो 5 नथी / तेथी एक पदमां व्यभिचार आवतो होवाथी तेमने नमस्कार करवाथी बीजाओने नमस्कार : कर्यानुं फळ मळी न शके। प्रयोग पण छे के, साधु मात्रने करेलो नमस्कार विशिष्ट एवा अरिहंत वगेरेना गुणोने कराता नमस्कारनुं फळ आपवामां समर्थ नथी / कारण के एर्नु सामान्य एबुं नमस्कार नाम छ / मनुष्य मात्रने नमस्कार करीए तेना जेवू छे / तेथी नमस्कार पांच प्रकारनो ज छे। 10 तात्पर्य ए छे के, बे प्रकारनो नमस्कार करी शकातो नथी / ए प्रकारे करवाथी अव्यापकपणानो दोष आवशे / 'सिद्ध' कहेवाथी अरिहंतना समस्त गुणोनो बोध थतो नथी। ए रीते 'साधु' कहेवाथी आचार्य अने उपाध्यायना गुणो पण ग्रहण करी शकाता नथी / आ कारणे संक्षेपमा बे प्रकारना परमेष्ठीने नमस्कार करवो युक्त नथी / 'साधु'मात्र कहेवाथी आचार्य अने उपाध्यायना गुणोनुं स्मरण थई शकतुं नथी। केमके 16 सामान्य कथनथी विशेषनी उपलब्धि थई न शके / जेम मनुष्य सामान्यने नमस्कार करवाथी अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधुना गुणोनुं स्मरण थई शकतुं नथी, अने तद्रूप बनवानी प्रेरणा पण मळी शकती नथी, आथी पंच परमेष्ठीने नमस्कार करवो जरूरी छ। जे अनंत परमेष्ठीओनी नमस्कार करवानी वात कहेवामां आवी छे तेनुं समाधान 'सव्व' पदद्वारा थई शके छ / आ पद बधाये परमेष्ठीओने जोडवामां आवे छे, जेनाथी अनंत अरहंत, अनंत सिद्ध, अनंत * 20 आचार्य, अनंत उपाध्याय अने अनंत साधुओ ग्रहण थई शके छे / शक्ति सीमित होवाथी अलग अलग अनंत परमेष्ठीओनुं निरूपण करवामां आव्युं नथी / सामान्यनी अंदर ज विशेष भेदोनुं पण ग्रहण थई जाय छे / 133, (1019) 9. क्रम द्वार। ___ नमस्कार मंत्रमा अरिहंत, सिद्ध, आचार्य वगेरे क्रम राखवामां आव्यो छे तेनो विचार आ 25 क्रम द्वारमा करवामां आव्यो छे / श०—आ क्रम पूर्वानुपूर्वीथी नथी, तेम पश्चानुपूर्वीथी पण नथी, केमके पहेलामां ( पूर्वानुपूर्वी क्रमथी) सिद्ध आवे बीजामां (पश्चानुपूर्वीक्रमथी ) साधु वगेरे आवे। (134) वि०-क्रम बे प्रकारनो होय छे / 1 पूर्वानुपूर्वी अने 2 पश्चानुपूर्वी / अनानुपूर्वी ए क्रम नथी, कारण के ते आडो अवळो होय छे। नमस्कारमा अरिहंत आदिनो क्रम पूर्वानुपूर्वी नथी, केमके सिद्धो एकांते कृतकृत्य होवाथी अरिहंत करतां प्रधान छ / प्रधाननु श्रेष्ठपणुं होवाथी पूर्वमा 30 कहेवा जोईए।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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