________________ यंत्र-चित्र परिचय नोंध: 'नमस्कार स्वाध्याय 'ना आ प्राकृत विभागनी शरूआतमां आपेला पांच चित्रोमांथी त्रण अने यंत्रो सिवायनां बीजां छूटांछवायां अनेक चित्रो के जे जैन शिल्प-स्थापत्यना महत्त्वना नमूनारूप छे ते मथुराना कंकालीटीलाना खोदकाममांथी मळी आवेल अवशेषोना फोटाओने आधारे तैयार करावेल छे। जेम जेम विशेष संशोधन थतुं गयुं तेम तेम जैन शिल्प-स्थापत्यनी दृष्टिए कंकालीटीलानी अगत्य वधती रही छे। कंकालीटीलामांथी जूनां प्राचीनतम स्मारको, अवशेषो आदि मळी आवतां ते स्थळ जैनटीला 'Jaina Mound' तरीके प्रसिद्धि पामेल छे। आ रीते जैन संस्कृतिने समजवा माटे मथुरा नगरी अति महत्त्व- स्थान बनी गई छे।। आ मथुरा नगरीनो उल्लेख प्रस्तुत ग्रंथमां छपायेल 'श्री महानिशीथ सूत्र'मां अति विशिष्ट रीते थयो छे। पृष्ठ 53 पं. 16-17 तथा पृ. 68 पं. 8-9 मां ऐतिहासिक विगत रजू करवामां आवी छे के “अचिन्त्यचिंतामणि तुल्य आ महानिशीथ श्रुतस्कंधनो जे प्राचीन आदर्श (प्रति) मथुराना सुपार्श्वनाथ भगवानना स्तूपमां हतो ते पंदर दिवसना उपवास करवाथी शासनदेवीए मने आप्यो, पण तेमां खंडित थई जवाथी तेमज उधेइ वगेरे कारणोथी घणां पानां सडी गयां छे (खंडित थई गयां छे) तो पण अत्यंत महान अर्थातिशयवाळा आ महानिशीथश्रुतस्कंघने समग्र प्रवचनना परम सारभूत परम तत्त्व तथा महा अर्थयुक्त समजीने प्रवचन उपरना वात्सल्यथी, वळी; घणा भव्य जीवोने उपकारक छे एम समजीने तेमज पोताना आत्माना कल्याण माटे आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराजे ते आदर्शमां जे जोयुं ते बधु पोतानी मति प्रमाणे शुद्ध करीने लख्युं छे / " . आ रीते मथुरा नगरीनी अनेकविध विशिष्टता छ / तेथी 'नमस्कार स्वाध्याय'ना त्रणे विभागोमां मथुराना शिल्पने खास महत्त्वचें स्थान आप्यु छ। प्रस्तुत विभाग तेमज ते पछीना विभागोमां मथुराना शिल्पनां मूळ चित्रो परथी विशेष काळजीपूर्वक नवा छतां मूळने संपूर्ण वफादार रहेतां एवां चित्रो तैयार करावी रजू कर्या छ / - ग्रंथनी शरूआतमां आपेल प्रथम पांच चित्रोनो क्रमानुसार परिचय :(1) परमेश्वर-परमेष्ठी श्री अरिहंतदेव परमेश्वर परमेष्ठितुं आ प्रतिमा-चित्र विन्सेन्ट ए. स्मिथ रचित " The Jaina Stupa and other Antiquities of Mathura" (Archaeological Survey of India, New Imperial Series Volumexx; published in 1901) नामना परिचयात्मक ग्रंथनी नं. XCII अने XCVI-एम बे प्लेटो परथी चित्रकार पासे तैयार कराव्यु छ। प्लेट XCVI मां आपेल प्रतिमा-चित्रमा बन्ने भुजाओ खंडित थयेली छे, जे अन्य प्लेटो परथी तेमज प्रतिमाने लक्ष्यमा लइ चित्रकारे पोतानी बुद्धिथी पूर्ण करी छे / मुखना भाव जेवा छे एवा ज राखवा प्रयास कर्यो छे। वळी आ मूर्तिना मस्तक पाछळ आपेल भामंडळ आ प्लेटमां नथी, जे प्लेट नं. XCII मांथी लेवामां आव्यु छ। भामंडळ परना आजुबाजुना. बे इन्द्रोमांथी एक ज इन्द्र प्लेट नं XCII मां छे अने बीजी बाजुनी मूर्ति खंडित 'थयेली छे, जे चित्रकारे प्रथम इन्द्रना चित्रना आधारे पूर्ण करेल छ / आ रीते जुदाजुदा भागोने एकत्र करी तीर्थकर भगवंतनुं आ भव्य प्रतिमा-चित्र खडं करवा प्रयास को छे / जे मुख्य प्लेट परथी आ भव्य प्रतिमा-चित्र तैयार थयु छे ते प्लेट नं. XCVI ना मथाळे - Colossal Image of Seated Tirthamkara, dated Samvat 1134"ए प्रमाणे लखेलुं छे, ज्यारे बीजी प्लेट XCII पर "Life-size image of seated Jina"-लखेलुं छे / आ प्रतिमा-चित्रनी विशिष्टता ए छे के सामान्य रीते आवा आकारनी प्रतिमाओ श्री गौतमबुद्धनी प्रतिमा तरीके प्रचलित छे; परंतु आ मूर्ति परथी सिद्ध थाय छे के जैनोमां पण एवा ज आकारनी प्रतिमाओ हती। (2) शासनरक्षिका देवी चक्रेश्वरी-विमलवसही, देलवाडा; आबु चक्रेश्वरी देवीनुं आ शिल्प आबु परना देलवाडाना देरासरमां कंडारेलुं छे / तेना फोटोग्राफ परथी चित्र तैयार करी अहीं रजू करवामां आव्युं छे।