SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 694
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमखण्ड-शुद्धिकरण 661 शुद्ध शुद्ध पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध 406 21 व ऐश्कार्य का ऐश्वर्य 412 18 मिल कर स्थिर रह कर 416 3 क्कचित् क्वचित 23 सिद्धिस्वरूपादि सिद्धि 1 तद्सव तदसत __प्यकनेकान्ते प्यनेकान्ते 436 14 के सम्बन्ध के लिये के लिये 441 2 सम्बधो सम्बन्धो 461 21 मुख्या मुख्य 26 कुंडली कुंडल 471 21 तीसरे के . तीसरे के लिये 478 8 यत्वाद्य यत्त्वाद्य 487 - 8 कुरादितु कुरादिकर्तु 486 15 काणुसरणा कानुसरणा . 492 16 जन्य नहीं जन्य ही 594 10-11 तदभास तदाभास 500 21 प्राप्ति प्रसिद्ध व्याप्ति सिद्ध 514 11 स्वयकार्य स्वकार्य 519 32 मानी होगी. माननी होगी 524 18 जुलाही जुलाहा 31 यदि में में यदि 525 20. एक को एक एक को -527 17. अतः यतः 531 24 प्रमणाभूत प्रमाणभूत 532 3 गुणानना गुणाना 534 5 करण कारण 16 होने से होने में 535 12 प्रतिपाद्य प्रतिपादक a n ** * * - * * | पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध 544 13 कि कि-जिस 20 प्रभत्व प्रभवत्व 546 6 नकान्तिको नैकान्तिको 546 1 वच किं च 560 15 कि जाय की जाय 570 20 केवल कवल 583 22 उद्भवन उद्धावन 584 19 लोक के लोक का 585 20 बुद्धि बुद्धि में | 586 21 [147-4] [543-5] | 590 23 है है [583-2] 16. उपकारक उपकार 562 28 होने की होने के 595 28 सन्नाता सन्ताना 601 4-13 संवदेन संवेदन 606 8 विशिष्टि विशिष्ट 608 32 प्रकाश ही मेघ ही | 612 20 साथ ज्ञान 24 बौद्धमत बौद्धमत 619 16 ग्राह्य से से ग्राह्य 623 22 परमाणुस्थिति परमाणु की सत्ता का भान होता है। उसी तरह, वस्तु की मध्यकालीन स्थिति / 632 3 गुणच्छेद गुणोच्छेद dex - a f
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy