________________ 628 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 यच्च 'निर्हेतुकविनाशप्रतिषेधात् सन्तानोच्छेदे हेतुर्वाच्यः' इत्यादि, तदसंगतम् , सम्यग्ज्ञानाद् विपर्ययज्ञानव्यावृत्तिकमेण धर्माऽधर्मयोस्तत्कार्यस्य च शरीरादेरभावेऽपि सकलपदार्थविषयसम्यग्ज्ञानानन्ताऽनिन्द्रियजप्रशमसुखादिसन्तानस्य निवृत्त्यसिद्धेः / न च शरीरादिनिमित्तकारणमात्ममनःसंयोगं अत्यन्तोच्छेद साध्य के साधक आपके हेतु अनेक दोषों से दुष्टता के प्रतिपादन में हमने कोई कमी तो रखी नहीं है ? [सन्तानत्वहेतुक अनुमान में सत्प्रतिपक्षता ] सन्तानत्वहेतु में सत्प्रतिपक्ष दोष भी सावकाश है। प्रकृत साध्य वैपरीत्य के साधक अन्य किसी हेतु वाले अनुमान से प्रकृत हेतु सन्तानत्व सत्प्रतिपक्षित हो जाता है। अनुमान इस प्रकार हैबुद्धि आदि का सन्तान अत्यन्तोच्छेदवाला नहीं है क्योंकि अत्यन्तोच्छेद किसी भी प्रमाण से उपलब्ध नहीं होता। जिस वस्तु का किसी भी प्रमाण से अत्यन्तोच्छेद नहीं होता उस वस्तु का अत्यन्तउच्छेद नहीं मानना चाहिये जैसे कि पार्थिव परमाणुओं के पाकजन्यरूपादि का सन्तान / बुद्धि आदि का सन्तान भी वैसा ही है अतः अत्यन्तोच्छेदवाला नहीं हो सकता / जब यह प्रतिपक्षी अनुमान जागरूक है तब सन्तानत्व हेतु वाला अनुमान सत्प्रतिपक्षित क्यों नहीं होगा?. यदि कहें किसन्तानत्वहेतुवाले अनुमान प्रमाण से अत्यन्तोच्छेदरूप साध्य प्रतीयमान होने से किसी भी प्रमाण से उपलब्ध न होने की बात मिथ्या है-तो यह ठीक नहीं, क्योंकि हमारे दिखाये हुए प्रति-अनुमान से आप का सन्तानत्व हेतु सत्प्रतिपक्ष हो गया है अत: उससे अत्यन्तोच्छेदरूप साध्य की प्रतीति होने की बात ही मिथ्या है / यदि ऐसा कहें कि-'किसी भी प्रमाण से अनुपलब्धि' रूप हेतु से किये जाने वाला प्रति-अनुमान प्रमाणभूत है यह सिद्ध होने पर ही सन्तानत्व हेतु में सत्प्रतिपक्ष दोष लग सकता है, किन्तु प्रतिपक्षसाधनभूत विवक्षितानुपलब्धिहेतु वाला प्रति-अनुमान का प्रामाण्य तो तभी सिद्ध होगा जब सन्तानत्व हेतु सत्प्रतिपक्ष से दूषित होने का सिद्ध हो / तात्पर्य, यहाँ सत्प्रतिपक्ष से दोष नहीं लग सकता ।-किन्तु यह बात ठीक नहीं, क्योंकि हम तो यहाँ आपकी मान्यता के अनुसार ही सत्प्रतिपक्ष दोष का आपादान करते हैं और आपके मत से तो साध्यवैपरीत्य साधक अन्य हेतु का प्रयोग करने पर हेतु सत्प्रतिपक्ष होता ही है इसलिये हमने सत्प्रतिपक्ष दोष का उद्भावन किया है। वास्तव में, हम तो उसे दोषरूप ही नहीं मानते हैं यह तथ्य पहले कहा है और आगे भी कहेंगे। अतः सन्तानत्व हेतु में सत्प्रतिपक्ष दोष यहाँ लगे या न लगे, किन्तु असिद्ध, अनैकान्तिक, विरुद्धत्वादि किसी भी एक दोष के लगने पर हेतु तो दूषित हो ही जाता है और असिद्धादि दोष का प्रतिपादन तो हमने किया ही है इसलिये अब प्रासंगिक बात को जाने दो, हमारा प्रयास तो सिर्फ दिशासूचनरूप ही है। [ तत्त्वज्ञान से सन्तानोच्छेद अशक्य ] आपने जो पहले (595-9) 'निर्हेतुक विनाश निषिद्ध ( = अमान्य) होने से सन्तान के उच्छेद में हेतु दिखाना चाहिये'....इत्यादि कह कर, तत्त्वज्ञान को सन्तानोच्छेद का हेतु दिखाया थावह भी संगत नहीं है, अर्थात् तत्त्वज्ञान ज्ञानादिसंतान के उच्छेद का हेतु नहीं बन सकता। सम्यग्ज्ञान से विपरीतज्ञान की निवृत्ति, उसके बाद धर्म-अधर्म का क्षय और धर्माधर्मकार्यभूत शरीर का वियोग, इतना तो हो सकता है, किन्तु सकलपदार्थसाक्षात्कारी सम्यग्ज्ञान के सन्तान की और इन्द्रिय से अजन्य अनन्त प्रशम सुखादि के सन्तान की निवृत्ति कथमपि सिद्ध नहीं है। यदि ऐसा कहें कि-मुक्तदशा में