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________________ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 तथा तत्र भगवता पतञ्जलिनाऽप्युक्तम्-भोगाभ्यासमनुवर्धन्ते रागा:, कौशलानि चेन्द्रियाणाम् [पात० यो० पा० 2 स० 15 व्यासभाष्ये ] इति / अपि च, अन्यथाप्यभिलाषनिवृत्तिष्टा यथा विषयदोषदर्शनात , तत्रापि भवतां मते विषयोपभोगतुल्यं सुखं भवेत् , तुल्ये चाभिमतार्थलाभे सुखविशेषो न स्यात् , अभिलाषनिवृत्तेरविशेषात् / / उसकी निवृत्ति शक्य होने पर भी विशिष्ट मिष्टान्नादि के लिये लोगों की प्रवृत्ति होती है वह न होती। तथा, सुख भावरूप होने से उसमें तर-तमभाव हो सकता है अतः विशिष्ट (सातिशय) सुख के लिये विशिष्ट प्रकार के साधनों की खोज करना युक्तियुक्त है किंतु दुःखाभाव तो सर्व उपाख्या ( अवान्तर जातिभेद) से शून्य है, तो उसके लिये विशिष्टि साधनों की क्या आवश्यकता ? [ रमणीयविषयों से सुखविशेष की सिद्धि ] जिन लोगों ने ऐसा माना है कि-"पूर्व में जब दुःख संवेदन नहीं होता और विषयोपभोग से सुखानुभव होता है वहाँ भी विषयोपभोग की इच्छा जो कि दुःखस्वरूप ही है उसका निवर्तन ही सुखस्वभावरूप में संविदित होता है-" तो यह उनकी मान्यता गलत है, क्योंकि जिसको विषयोपभोग की इच्छा तक नहीं है और विशिष्ट विषय का संवेदन होता है उसको सुखानुभव न होने की आपत्ति होगी क्योंकि वहाँ इच्छानिवत्तन स्वरूप दुःखाभाव का सम्भव ही नहीं है। अभिलाष न होने की . दशा में भो मनोहर विषय के सम्पर्क से सुखानुभव होता है यह तो प्रसिद्ध हो है। [ अभिलापनिवृत्ति द्वारा सुखानुभव की शंका ] अगर यहाँ शंका करें कि-- - जहाँ विषयाभिलाष होता है वहाँ ही विषयोपभोग से सुखानुभव होता है, दूसरे को नहीं होता ऐसा नियम है / कारण, विषयभोग के अभिलाष की निवृत्ति के द्वारा ही विषयवृद सुखानुभव कारक होता है / यदि ऐसा नहीं मानेंगे तो एक व्यक्ति को जिस साधन से सुखानुभव होता है उस साधन से सभी को समानरूप से सुखानुभव होने की आपत्ति होगो ( वास्तव में यह देखा जाता है कि एक वस्तु से किसी को सुख होता है तो दूसरे को दुःख भी होता है ) / इच्छा की निवृत्ति से ही सुखानभव का नियम माना जाय तब यह उक्त आपत्ति नहीं होगी क्योंकि जिस व्यक्ति को जिस विषय का अभिलाष होगा, उस व्यक्ति के लिये ही वह विषय सुख का साधन होगा अन्य के लिये नहीं। अतएव यह जो आप कहते हैं कि निष्काम व्यक्ति को भी कभी कभी विषयोपभोग से सुखानुभव होने का प्रसिद्ध होने से 'कामस्वरूप दुःख की निवृत्ति' यही सुखरूप नहीं है। यह बात गलत है, क्योंकि निष्काम व्यक्ति को भी विशिष्ट विषय के उपभोग से इच्छा उत्पन्न हो जाती है यह उक्त नियम के बल से मानना ही पड़ेगा, अत: कामनिवृत्ति को ही सुखस्वरूप मानने में कोई आपत्ति नहीं है / [भोग से इच्छानिवृत्ति अशक्य ] किन्तु यह शंका भी गलत है क्योंकि विषयोपभोग से विषयभोगेच्छा की निवृत्ति होने का कोई सुदृढ़ नियम ही नहीं है / जैसे कि महाभारत में कहा गया है ___'कमनीय विषयों के उपभोग से कामना कभी शान्त नहीं होती / जैसे कि इन्धन से कभी अग्नि शान्त नहीं होता, उलटे उसकी अत्यधिक वृद्धि होती है ।'-योगसूत्रकार भगवान् पतंजली ने भी कहा है कि बार बार भोग करने से राग की वृद्धि होती है और इन्द्रियों के कौशल की भी। .
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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