________________ 504 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 वास्यादिवदचेतनस्य चेतनानधिष्ठितस्य प्रवृत्त्यदर्शनात् ? प्रवृत्तावपि निरभिप्रायाणां देशकालाकारनियमो न स्यात् , तदधिष्ठितस्यैव तस्य तन्नियतत्वदर्शनात् / नन्वेवं चेतनस्यापि चेतनान्तरानधिष्ठितस्य कर्मकरादेरिव स्वाम्यनधिष्ठितस्य कथं प्रवृत्तिः ? अथ स्वामिन एवान्यानधिष्ठितस्य चेतनस्य प्रवृत्तिरुपलभ्यते, किमंकुरादेरकृष्टोत्पत्तरुपादानस्य तदनधिष्ठितस्य सा नोपलभ्यते ? अथ घटादेरुपादानस्य तदनधिष्ठितस्य तत्करणे प्रवृत्तिर्नोपलभ्यत इत्यंकुरायुपादानस्यापि तदधिष्ठितस्यैव सा प्रसाध्यते तर्हि कर्मकरादेरपि स्वाम्यनधिष्ठितस्य सा नोपलभ्यत इति स्वामिनोऽप्यपरचेतनान्तराधिष्ठितस्य सा साध्यताम् / यदि पुनः स्वामिनोऽप्यधिष्ठाता चेतनो महेशः परिकल्प्यते तहि तस्याप्यपर इत्यनवस्था। न च चेतनस्याप्यपरचेतनाधिष्ठितस्य प्रवृत्त्यभ्युपगमे 'अचेतनं चेतनाधिष्टितम्' इति प्रयोगे 'प्रचेतनम्' इति धमिविशेषणस्य 'अचेतनत्वादेः' इति हेतोश्चाव्यर्थमुपादानम् , अचेतनवच्चेतनस्यापि चेतनाधिष्ठितस्य प्रवृत्त्यभ्युपगमे व्यवच्छेद्याभावात् / न चाऽचेतनानामपि स्वहेतुसंनिधिसमासादितोत्पत्तीनां चेतनाधिष्ठातृव्यतिरेकेणाऽपि देश-कालाकारनियमोऽनुपपन्नः, तनियमस्य स्वहेतुबलायातत्वात अन्यथाऽधिष्ठातृज्ञानकृतोऽपि स न स्यात् / तज्ज्ञानस्य सर्वाऽचेतनाधिष्ठायकत्वे क्षणिकत्वे च तज्ज्ञेयत्व [अचेतनवत् चेतन में भी चेतनाधिष्ठान की आपत्ति ] यदि असमवायिकारणादि के अभाव में भी वहाँ ज्ञानादि की उत्पत्ति को उचित मानेगे तो निमित्तकारणभूत ईश्वर के विना अंकुरादि की उत्पत्ति को उचित क्यों न कही जाय ? ! यदि यह कहा जाय-ज्ञानादि के अभाव में ईश्वर से अनधिष्ठित अचेतन उपादनादिकारण क्रियान्वित कैसे होंगे? जों अचेतन होता है वह चेतन से अधिष्ठित हुए विना क्रियान्वित होते हुए नहीं दिखते हैं जैसे कुठारादि / यदि चेतनाधिष्ठान के विना भी उनमें क्रियान्वय मानेंगे तो किसी चेतन की इच्छा का नियन्त्रण न रहने से उनमें देशनियम, कालनियम और आकारनियम नहीं घटेगा / चेतनाधिष्ठित पदार्थों में ही ये नियम देखे जाते हैं। तो यहाँ प्रश्न है कि मालिक से अनधिष्टित यानी अप्रेरित कर्मचारी आदि की प्रवृत्ति जैसे नहीं होती वैसे चेतनानधिष्ठित चेतन की ( = ईश्वर की ) भी प्रवृत्ति कैसे होगी ? यदि कहें कि- जो मालिक होता है उसकी तो अन्य चेतन की प्रेरणा के विना भी प्रवृत्ति उपलब्ध होती ही है-तो फिर विना कृषि से उत्पन्न अंकुरादि के उपादान में भी चेतन की प्रेरणा विना क्रिया की उपलब्धि होने का क्यों नहीं मानते हैं ? यदि कहें-चेतन की प्रेरणा के विना घटादि के उपादान कारणों की घटादि कार्य करने की प्रवृत्ति नहीं देखी जातो, इसीलिये अंकुरादि के उपादान में भी चेतन की प्रेरणा से ही अकुरजनक प्रवत्ति सिद्ध करना चाहते हैं ।-तब तो हम भी कहेंगे कि मालिक की प्रेरणा के विना चेतन कर्मचारी की प्रवृत्ति अनुपलब्ध है इसलिये मालिक की प्रवृत्ति भी उससे भिन्न अन्य चेतन की प्रेरणा से ही होती है ऐसा भी आप को सिद्ध मानना होगा। यदि कहें कि -मालिक को प्रेरणा करने वाले अन्य महेश्वर चेतन की सिद्धि हमें इष्ट ही है तो उस ईश्वर के प्रेरक अन्य चेतन की कल्पना का कहीं अन्त ही नहीं आयेगा। [ 'अचेतन' विशेषण में नैरर्थक्य की आपत्ति ] दूसरी बात यह है कि यदि चेतन भी अन्य चेतन से अधिष्ठित होकर ही प्रवृत्त होने का मानेंगे तो आपने जो पहले [ द्र० 412-6 ] यह प्रशस्तमतिके अनुमान का प्रयोग किया था-'अचेतन