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________________ प्रथमखण्ड-का० १-ईश्वरकतृ त्वे सत्तासमीक्षा 445 'भवतु तहि नैरात्म्यनिषेधः सात्मकः' / तथा सति सत्तासम्बन्धात् प्राक् तन्वादि (दिना)ऽसत्-इति वचनात्तदा तस्य सत्वमुक्तम् , 'न सत्' इत्यभिधानादसत्त्वमिति विरोधः / ततोऽसदेव तदभ्युपगन्तव्यमिति न वन्ध्यासुतादेस्तनु-करणादेविशेषः / 'भवत्वेवं तथापि तन्वादेरेव सत्तासम्बन्धात् सत्त्वम् न खरश गादेः तथादर्शनादिति चेत् ? उक्तमत्र तथादर्शनोपायाभावादिति / / [ सत्तापदार्थसमीक्षा] अपि च सत्ताऽपि यदि असती, कथं ततो वन्ध्यासुतादेरिवाऽपरस्य सत्त्वम् ? सती चेद् यदि अन्यसत्तातः, अनवस्था, स्वतश्चेत , पदार्थानामपि स्वत एव सत्त्वं स्यादिति व्यर्थं तत्परिकल्पनम् / कि च यदि स्वत एव सत्ता सती उपेयते तदा प्रमाणं वक्तव्यम् / अथ स्वतः सत्ता सती, तत्सम्बन्धात् तन्वादीनां सत्त्वाऽन्यथानुपपत्तेः / तान्योन्याश्रयः, तत्सम्बन्धात् तन्वादिसत्त्वे सिद्ध सत्तासत्त्वसिद्धिः, ततस्तत्सम्बन्धात् तन्वादिसत्त्वसिद्धिरिति व्यक्तमितरेतराश्रयत्वम् / अथ सत्ता स्वतः सती, सदभिधानप्रत्ययविषयत्वात् , अवान्तरसामान्यादिवत् / न, द्रव्यादिना व्यभिचारः; द्रव्यादिरपि 'सद् द्रव्यम् , सन् गुणः, सत् कर्म' इत्येवं सदभिधानप्रत्ययविषयो भवति, न चासौ परेण स्वतः सन्नभ्युपगतः, सत्ताप्रकल्पनवैफल्यप्रसंगात्। पूर्वपक्षीः-प्राणादिमत्त्व नैरात्म्य से इस प्रकार विरुद्ध है कि-नैरात्म्य का व्यापक प्राणादिमत्त्वाभाव प्राणादि से विरुद्ध है यह तो सिद्ध ही है / अतः प्राणादि के सद्भाव से प्राणादिमत्त्व का अभाव दूर हो जायेगा जैसे कि अग्नि के सद्भाव से शीत दूर हो जाता है। जब प्राणादिमत्त्व का अभाव दूर होगा तो उसका व्याप्य नैरात्म्य भी दूर हो ही जायेगा, जैसे धूम का अभाव दूर होने पर अग्नि का अभाव भी दूर होता ही है। इस प्रकार जीवंत देह में नैरात्म्य का निषेध फलित क्यों नहीं होगा? - उत्तरपक्षी:-इसका उत्तर हमने पहले ही दे दिया है [ पृ० 444 पं० 2 ] कि नैरात्म्य का अभाव यदि सात्मक-रूप नहीं मानेंगे तो नैरात्म्य तदवस्थ ही रहेगा, उसका निषेध संगत नहीं हो सकेगा। __यदि नैरात्म्य के निषेध को सात्मक-रूप मान लेते हैं तो आप के पूर्वोक्त वचन में ऐसा विरोध फलित होगा कि 'सत्ता के सम्बन्ध से पहले देहादि असत् नहीं होते' इस वचन से सत्त्व का प्रतिपादन फलित होगा, और 'सत् भी नहीं होता' इस वचन से असत्त्व का। इस प्रकार असत्त्व और सत्त्व दोनों के प्रतिपादन में स्पष्ट विरोध होगा / सत्त्व तो आप मान ही नहीं सकेंगे, अतः सत्ता के सम्बन्ध से पहले असत् ही कहना होगा। निष्कर्ष:-देह करणादि और वन्ध्यासुतादि असत् पदार्थों में कोई विशेषता सिद्ध नहीं हुयी। यदि कहें कि-'विशेषता सिद्ध भले न हो फिर भी देहादि में ही सत्ता के सम्बन्ध से सत्त्व आता है, खरसींग आदि में नहीं, क्योंकि एक का सत्त्व और दूसरे का असत्त्व जाता है ।'-तो इसके प्रतिकार में पहले ही यह कहा जा चुका है कि ऐसा देखने का कोई उपाय ही नहीं है / जो उपलम्भ का कारण नहीं होता वह उसका विषय नहीं होता, असत् देहादि उपलम्भ के कारण न होने से उसके साथ सत्ता का सम्बन्ध कभी उपलम्भ का विषय नहीं बन सकेगा। [न्यायमत में सत्तापदार्थ की असंगति ] सत्-असत् की बात चलती है तो यह भी सोचना चाहिये कि सत्ता असत् है या सत् ? यदि वह
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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