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________________ प्रथमखण्ड-का० १-ईश्वरकर्तृत्वे उत्तरपक्षः 439 यथा वा बुद्धित्वाविशेषेऽपीशास्मदादिबुद्ध्योरयमक्षणिकत्वक्षणिकत्वलक्षणो विशेषस्तथा भूरुहघटादिकार्ययोरप्यकर्तृ-कर्तृ पूर्वकत्वलक्षणो विशेषः किं नाभ्युपगम्यते ? इति पुनरपि तदेव दूषणं कार्यत्वादेर्हेतोरनैकान्तिकत्वलक्षणं प्रकृतसाध्ये। तदेवं बुद्धिमत्कारणपूर्वकत्वलक्षणे साध्ये मतुबर्थाऽसम्भवात् तन्वादीनामनेकधा प्रमाणबाधासम्भवाच्च शास्त्रव्याख्यानादिलिंगानुमीयमानपाण्डित्यगुणस्य देवदत्तस्येव मूर्खत्वलक्षणे साध्येऽनुमानबाधितकर्मनिर्देशानन्तरप्रयुक्तस्य कार्यत्वादेहेतोः कालात्ययापदिष्टत्वेन तत्पुत्रत्वादेरिवाऽगमकत्वम् अनुमानबाधितत्वं वा पक्षस्येति स्थितम् / तथा 'कार्यत्वात्' इति हेतुरप्यसिद्धः / तथाहि-किमिदं तन्वादीनां कार्यत्वम् ? 'प्रागसतः A स्वकारणसमवाय:' B सत्तासमवायो वा' इति चेत् ? कुतः प्रागिति ? कारणसमवायादिति चेत् ? कौनसा बाधक अनुमान है-इसका उत्तर यह रहा 'ज्ञान क्षणिक है' क्योंकि वह अपने लोगों के प्रत्यक्ष का विषय और विभु आत्म द्रव्य का विशेषगुण है, उदा० शब्द / यह अनुमान बुद्धि के अक्षणिकत्व में बाधा डाल रहा है। उत्तरपक्षी:-अपने लोगों की बुद्धि को अक्षणिक मानने में जैसे उपरोक्त बाधक अनुमान का सम्भव है, वैसे ही कृषि के विना उत्पन्न स्थावरकार्यों में कर्तृ पूर्वकत्व को मानने में भी बाधक अनुमान का सम्भव कैसे है यह हम दिखाने वाले हैं अतः इस विषय में अभी आप अधृति मत कीजिये। तथा, बुद्धि के क्षणिकत्व का अनुमान कितने दोषों से दुष्ट है यह भी हम शब्द की पुद्गलमयता के विचार प्रस्ताव में दिखायेंगे, अतः उसकी चर्चा को भी अब मौकूफ रखें। [ कार्यत्व हेतुक अनुमान बाधित है ] यह भी हम पूछ सकते हैं कि जब बुद्धित्व समान होने पर भी ईश्वर और अपने लोगों को बुद्धि में क्रमशः अक्षणिकता और क्षणिकत्व की विशेषता मानी जाती है। तब घटादि और वृक्षादि कार्यों में क्रमशः कर्तृ पूर्वकता और कर्तृ विरह रूप विशेषता क्यों नहीं मानते हैं ? इस विशेषता के कारण फिर से एक बार बुद्धिमत्कारणपूर्वकत्व साध्य के साधक कार्यत्व हेतु में अनैकान्तिकत्व का दूषण उभर आयेगा। ऊपर जो चर्चा की गयी उससे यह सार निर्गलित होता है कि बुद्धिमत्कारणपूर्वकत्वरूप साध्य में मतुप् (मत्) प्रत्यय का अर्थ संभव न होने से और शरीरादि अवयवी के विषय में अनेक प्रकार के प्रमाणों की बाधा उपस्थित होने से, साध्यनिर्देश के बाधित हो जाने पर कहे गये कार्यत्वादि हेतु कालात्ययापदिष्ट दोष से दूषित हो जायेगा। जैसे कि (उदाहरण)- देवदत्त में 'शास्त्रों के सही व्याख्यान' आदि लिंग से उत्थित अनुमान द्वारा पांडित्य गुण की सिद्धि हो जाने पर कोई ऐसा अनुमान प्रयोग करे देवदत्त मूर्ख है क्योंकि स्थूलकाय है-तो यहां मूर्खरूप साध्य पूर्वोक्त अनुमान से बाधित है अत: स्थलकाय हेतु कालात्ययापदिष्ट हो जाता है। कालात्ययापदिष्टता के कारण, जैसे 'वह मूर्ख है क्योंकि मूर्ख का पुत्र है' ऐसे अनुमान मे मूर्खपुत्रत्व और मूर्खत्व को व्याप्ति न होने से मूर्खतनयत्व हेतु मूर्खत्व रूप साध्य का साधक नहीं बन सकता वैसे यहाँ भी कार्यत्व हेतु साध्य का गमक नहीं बन सकेगा। अथवा कृषि के विना उत्पन्न स्थावर कार्यरूप पक्ष में बुद्धिमत्कारणपूर्वकत्वविरह साधक अनुमान प्रवृत्त होने से पक्ष बाधित हो जायेगा।
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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