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________________ 416 .......... सम्मतिप्रकरण-जयकाण्ड-१ --- यतः प्रथमः पक्षस्तावदनभ्युपगमादेव निरस्तः / प्रसंगसाधनपक्षे तु यद् दूषणमभिहितम्-देशभेदलक्षणविरुद्धधर्माध्यासाभावेऽपि रूप-रसयोर्भेद इति, तद् व्याप्यव्यापकभावाऽपरिज्ञानं सूचयति न पुनयाप्यव्यापकभावाभावम् , यतो देशभेदे सति यद्यभेदः क्कचित् सिद्धः स्यात् तदा व्यापकाभावेऽपि विरुद्धधर्माध्यासस्य भावान्न तस्य तेन व्याप्तिः स्यात् / यदा तु देशाऽभेदेऽपि रूप-रसयो दस्तदा देशभेदो भेदव्यापको न स्यात् , न पुनरेतावता भेदो विरुद्धधर्माध्यासव्यापको न स्यात् / यदि हि भेदव्यावृत्तावपि देशादिभेदो न व्यावर्तेत तदा व्यापकव्यावृत्तावपि व्याप्यस्याऽव्यावृत्तेन भेदेन देशादिविरुद्धधर्माध्यासो व्याप्येत. न चैतत क्वचिदपि सिद्धम। यत्त 'सामान्यादावभेदस्य प्रमाणत: सिद्धर्भेदव्यावत्तावपि न देशादिभेदलक्षणविरुद्धधर्माध्यासस्य निवृत्तिः' इति, तदयुक्तम्-सामान्यादेः प्रमाणतोऽभिन्नरूपस्याऽसिद्धेः। उक्तं च-'यदि विरुद्धधर्माध्यासः पदार्थानां भेदको न स्यात् तदान्यस्य तद्भ दकस्याभावाद् विश्वमेकं स्यात्" / प्रतिभासभेदस्यापि तमन्तरेण भेदव्यवस्थापकस्याऽभावादिति व्याप्यव्यापकभावसिद्धेः कथं न प्रसंगसाधनस्यात्रावकाशः ? ! : है। कारण, देशभेद, कालभेद आदि विरूद्धधर्माध्यास न होने पर भी रूप और रस का भेद प्रतिवादी मानता है। और देशादिभेद सिद्ध होने पर भी जाति आदि में अभेद भी प्रमाणसिद्ध है / अतः प्रसंग साधन भी युक्त नहीं है। ___ उत्तरपक्षीः-ऐसा नहीं कहना चाहिये / [ कारण आगे कहते हैं ] / [अवयवी का विरोध प्रसंगसाधनात्मक है ] कारण यह है कि स्वतंत्रसाधन वाला प्रथम पक्ष तो हमें मान्य न होने से ही परास्त है। दूसरे प्रसंगसाधन पक्ष में जो यह दूषण दिखाया-'देशभेदस्वरूप विरुद्धधर्माध्यास न होने पर भी रूप-रस में भेद है'-इसमें तो आपको व्याप्य-व्यापकभाव की जानकारी नहीं है यही सूचित होता है, व्याप्य-व्यापकभाव का अभाव नहीं। क्योंकि, देशभेद होने पर भी कहीं यदि अभेद सिद्ध होता तब तो यह मानते कि व्यापक (भेद) न होने पर भी विरुद्धधर्माध्यास रहता है अत: भेद के साथ विरुद्धधर्माध्यास की व्याप्ति नहीं है / जब देशभेद न होने पर भी रूप-रस का भेद है तब तो इससे इतना ही फलित होगा कि देशभेद वस्तुभेद का व्यापक नहीं है, किन्तु इससे यह तो फलित नहीं हुआ कि वस्तुभेद विरुद्धधर्माध्यास का (यानी देशभेद का) व्यापक नहीं है ! वह तो तब फलित होता यदि वस्तु की निवृत्ति होने पर भी देशभेद निवृत्त न होता। हाँ ऐसा होता तब तो, व्यापक वस्तुभेद निवत्त होने पर भी व्याप्यरूप से अभिमत देशभेद की निवत्ति न होने से, वस्तुभेद के साथ देशभेदादि विरुद्धमध्यिास की व्याप्ति सिद्ध न होती, किन्तु ऐसा तो कहीं सिद्ध नहीं है कि वस्तुभेद न होने पर भी देशादिभेद रहता हो। पूर्वपक्षीः-ऐसा भी है-घटत्वादि सामान्य में अभेद तो प्रमाण सिद्ध है अत: वस्तुभेद न होने पर भी देशभेद स्वरूप विरुद्धधर्माध्यास तो वहाँ रहता है, उसकी निवृत्ति नहीं है यह पहले कहा है। उत्तरपक्षी:-यह जो कहा है वह गलत है / 'सामान्यादि पदार्थ का अभेद प्रमाणसिद्ध है' यह बात असिद्ध है। कहा भी है "अगर विरुद्धधर्माध्यास पदार्थों का भेदक न होता तो दूसरा कोई भेदक न होने से सारा विश्व एक हो गया होता।" भेद की
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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