________________ प्रथमखण्ड-का० १-सर्वज्ञवादः यदप्युक्तम् 'पक्षधर्मत्वनिश्चये सति हेतोरनुमानं प्रवर्तते, न च सर्ववित कुतश्चित् प्रमाणात सिद्धः' इत्यादि....तदप्ययुक्तम् , यतो यदि सर्वविदो मित्वं क्रियेत तदा तस्याऽसिद्धत्वात् स्यादप्यपक्षधर्मत्वलक्षणं दूषणम् , यदा तु वचनविशेषस्य धर्मित्वं तस्य विशिष्टकारणपूर्वकत्वं साध्यत्वेनोपक्षिप्त तदा तत्र तद्विशेषत्वादिलक्षणो हेतुरुपादीयमानः कथमपक्षधर्मः स्यात् ? न चाऽपक्षधर्मादपि हेतोरुपजायमान मनुमानं प्रमाणं भवताऽभ्युपगच्छता पक्षधर्मत्वाभावलक्षणं दूषणमासञ्जयितुयुक्तम् / अन्यथा, "पित्रोश्च बाह्मणत्वेन पुत्रब्राह्मणताऽनुमा / सर्वलोकप्रसिद्धा न पक्षधर्ममपेक्षते // " [ ] इत्याद्यपक्षधर्महेतुसमुत्थानुमानप्रामाण्यप्रतिपादनं भवतोऽप्ययुक्तं स्यात् / ___ यदप्यभ्यधायि-'सर्वज्ञसत्तायां साध्यायां त्रयों दोषजाति हेतु तिवर्तते' इत्यादि....तत्र स्याद / तत्सत्ता साध्यत्वेनाभ्युपगम्यते, यावता पूर्वोक्तप्रकारेण वचनविशेषस्य विशिष्टकारण से सर्वजनसाधारण में प्रसिद्ध जो यह व्यवहार है कि 'धम जहाँ होता है वहाँ अग्नि प्राप्त होता है उसका उच्छेद हो जायेगा। क्योंकि जब अनुमान संभवित नहीं रहा तो प्रत्यक्ष से भी उक्त व्यवहार की संभावना सुतरां नहीं की जा सकती। उत्तरः-ठीक है आपकी बात, किन्तु इसी प्रकार हम भी सवज्ञसिद्धि के विषय में कहेंगे कि विशिष्ट प्रकार का सत्यवचन विशिष्ट प्रकार के रागरहितपुरुषादि कारणपूर्वक सुना जाता है यह भी किसी प्रमाण से निश्चित किया गया है तो उसी प्रमाण से प्रसिद्ध विशिष्टकारणपूर्वकत्वरूप साध्य, विशेषत्वरूप हेत से हम विवादापन्न वचनों में भी सिद्ध करेंगे तो यहाँ क्या दोष है ? ! कुछ नहीं। तात्पर्य, वचनविशेषत्वरूप हेतु से आगम में सर्वज्ञरूप विशिष्टकारणपूर्वकत्व की सिद्धि होने पर सर्वज्ञसिद्धि निष्कंटक है / .. [पक्षधर्मताविरहदोष का निराकरण ] आपने जो यह कहा था कि-'हेतु में पक्षधर्मता का निश्चय हो जाने पर अनुमान का उद्भव होता है किन्तु सर्वज्ञरूप पक्ष किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं है' इत्यादि....यह ठीक नहीं है / कारण, यदि हम सर्वज्ञ का ही पक्षतया निर्देश करे तब तो अद्यावधि वह असिद्ध होने से हेतु में पक्षधर्मता का अभाव रूप दूषण सावकाश है, किन्तु, जब हम प्रसिद्ध ही वचन विशेष को (हमारे आगमिक वचन को) पक्ष करें, और उसमें विशिष्ट (यानी सर्वज्ञात्मक) कारणपूर्वकत्व साध्य करना चाहें तो अब वचनविशेषत्वरूप हेतु के उपन्यास में पक्षधर्मता का अभाव कैसे होगा? दूसरी बात यह है कि आप मीमांसक तो पक्षधर्मतारहि ने अनुमान को प्रमाण मानते हो (जैसे कि अभी आगे दिखाया जायेगा) तो फिर हमारे अनुमान में पक्षधर्मताविरह का दूषणरूप से उद्भावन करना युक्तिपूर्ण नहीं है / यदि पक्षधर्मताविरह को दोष माना जायेगा तो - "माता-पिता के ब्राह्मणत्वरूप हेतु से पुत्र में ब्राह्मणत्व का अनुमान होता है यह सर्वजन सिद्ध है, जहाँ पक्षधर्मता की कुछ अपेक्षा नहीं है" इस प्रकार के पक्षधर्मतारहित हेतु से उत्पन्न अनुमान के प्रामाण्य का जो आप प्रतिपादन समर्थन करते हैं वह यक्तिविकल हो जायेगा। क्योंकि हेतुभूस्त ब्राह्मणत्व माता-पिता अन्तर्गत है और पक्ष है पुत्र जिसमें ब्राह्मणत्व सिद्ध करना है, किन्तु मातापितृगतब्राह्मणत्व धर्म पक्ष में नहीं है, वह तो माता-पिता में है /