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________________ पृष्ठांकः विषयः | पृष्ठांकः विषयः 289 प्रज्ञा-मेधादिगुण की जन्मान्तरपूर्वकता कैसे? | 308 अविनाभाव को और उसके ज्ञान को मानना 290 विलक्षण शरीर से जन्मान्तर की सिद्धि ही चाहिये दुःशक्य 308 अविनाभावसंबन्धग्रह की योगिप्रत्यक्ष से 261 आत्मतत्त्व के आधार पर परलोकसिद्धि शक्यता दुष्कर | 306 अतीन्द्रियार्थसाधकानुमान का प्रतिक्षेप२६२ आगमप्रमाण से परलोकसिद्धि अशक्य तीसरा विकल्प 262 परलोकसिद्धावुत्तरपक्षः / 309 साध्य से हेतु के अनुमान की आपत्ति-निवारण 262 परलोक सिद्धि-उत्तर पक्ष 310 विरुद्धादि दोषों का निराकरण 263 नास्तिकमत में प्रत्यक्षप्रामाण्य की अनुपपत्ति 310 अर्थान्तरबोध का निमित्त कार्यकारणा२६४ प्रत्यक्ष से अविनाभावबोध होने पर अनुमान भावादि सम्बन्ध-बौद्धमत . के प्रामाण्य की सिद्धि 311 कार्य और स्वभाव हेतु में प्रतिबन्धसाधक 264 अविसंवादिताप्रत्यक्षवत् अनुमानादि में भी प्रमाण प्रामाण्यप्रसंजिका है 312 अनुमान से निर्विघ्न परलोक सिद्धि-उपसंहार 265 प्रत्यक्ष को प्रमाण मानने पर बलात अनुमान | 313 अनुमान से परलोकसिद्धि सुशक्य प्रामाण्यापत्ति | 313 केवल माता-पिता से इस जन्म की उत्पत्ति 266 हेतु में त्रैरूप्य का स्वीकार आवश्यक अयुक्त 267 तान्त्रिकलक्षणानुसारी अनुमान का प्रतिक्षेप | 313 सर्वदेश-काल के अन्तर्भाव से व्याप्तिग्रह की अशक्य शक्यता 268 अनुमान से पर्यनुयोग नास्तिक नहीं कर सकता| 314 विज्ञानधर्म और शरीरधर्मों में भेदसिद्धि 266 पर्यनुयोग में प्रसंग और विपर्यय अनुमान 315 विज्ञानधर्म विज्ञान का ही कार्य है समाविष्ट है | 316 शालक के दृष्टान्त से व्यभिचारापादन 266 नास्तिक कृत प्रसंगसाधन की समीक्षा असम्यक 300 नास्तिक कृत विपर्ययप्रयोग को समीक्षा | 317 शरीर और विज्ञान में उपादान-उपादेय 300 कार्यहेतुक परलोकसाधक अनुमान भाव प्रयुक्त 301 परलोकसाधक अनुमान का दृढीकरण | 317 शरीरवृद्धि से चैतन्यवृद्धि की बात मिथ्या 302 केवल माता पिता से जन्म मानने पर अतिप्रसंग 318 चिरपूर्ववत्ती मातापितृविज्ञान से वासना३०३ प्रज्ञादि आकारविशेष में जन्मान्तरप्रतिबद्धता प्रबोध अमान्य का प्रत्यक्षनिश्चय 319 आत्मा स्वसंवेदनप्रत्यक्ष का विषय 304 परलोक साधक अनुमान में इतरेतराश्रय / 320 शरीरादि में ज्ञातृत्व नहीं हो सकता दोष निवारण | 321 अहमाकार प्रतीति में प्रत्यक्षत्वविरोधी पूर्वपक्ष 305 व्याप्तिग्रहण में अनवस्था दोष का निवारण | | 322 आत्मा में अपरोक्षप्रतिभासविषयता की 305 व्याप्तिग्राहक प्रमाण के विषय में मतवैविध्य मीमांसा 306 अनुमान के अप्रामाण्यकथन के तीन विकल्प | 323 प्रात्मप्रत्यक्ष के लिये अलग प्रमाण की आपत्ति 307 अर्थान्तरबोध का निमित्त नियतसाहचर्य है | 324 संवेदन की संवेधता का अस्वीकार दुष्कर -नैयायिकादिमत | 324 चक्षु आदिकरण की वास्तविक प्रतीति नहीं है
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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