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________________ 21 पृष्ठांकः विषयः | पृष्ठांकः विषयः 222 सविकल्पज्ञान से कार्यकारणभाव का अवगम | 238 वचन की संवादिता ज्ञानविशेष का कार्य प्रशक्य असिद्ध 223 कार्यकारणभावग्रह में प्रत्यक्षान्यनिमित्त की 238 संवादिज्ञान के विरह में संवादिवचन का आवश्यकता असंभव 223 कारणता पूर्वक्षणवृत्तितारूप नहीं किन्तु 236 अनुगत एक सामान्य के अस्वीकार में आपत्ति शक्तिरूप है शंका-समाधान 224 अनुमान में कार्यकारणभावग्रह की अशक्ति 240 तिर्यक्सामान्यवादी को विशिष्टधूमसामान्य 224 प्रसिद्धानुमानवत् सर्वज्ञानुमान में भी व्याप्ति के अबोध की आपत्ति ग्रह का संभव 241 ज्ञानविशेष-वचनविशेष के कारणकार्यभाव 225 पक्षधर्मताविरहदोष का निराकरण ग्रहण में शंका 226 असिद्धि आदि तीने दोष का निराकरण | 242 क्षयोपशमविशेष से कारण-कार्यभावग्रहण 226 प्रमेयत्वहेतुक अनुमान में साध्यविकल्प | 242 कार्यकारणभाव दोनों से अतिरिक्त नहीं अयुक्त है | 243 क्षयोपशमविशेष से कार्यकारणभाव का ग्रहण 227 प्रमेयत्वहेतुवत् धूमहेतु में भी समान विकल्प | 244 प्रत्यक्ष ही व्याप्तिसंबंध का प्रकाशक है 228 धमसामान्य की कल्पना में चक्क दूषण 245 नेत्रजन्यत्वादि चार विकल्प का निराकरण 226 प्रसंगसाधन में प्रतिपादित युक्तियों का 245 सर्ववस्तुविषयक उपदेशज्ञान का संभव 246 चक्षुजन्यज्ञान में प्रतीन्द्रियविषयता का समर्थन 226 प्रत्यक्षत्व और सत्संप्रयोगजत्व की व्याप्ति 246 अस्पष्ट ज्ञान से सर्वज्ञता नहीं मानी जाती असिद्ध | 247 भावनाबल से ज्ञानवैशद्य का समर्थन 230 किचिज्ज्ञता और वक्तृत्व की व्याप्ति प्रसिद्ध 248 भित्ति आदि के आवारकत्व की भंगापत्ति 231 धर्मादि के अप्रत्यक्ष में तीन विकल्प 248 सर्वज्ञज्ञान में अस्पष्टत्वापत्ति का निरसन 232 तीनों विकल्प की अयुक्तता 246 रागादि के निर्मूल क्षय की प्राशंका का उत्तर 233 नेत्र से अतीन्द्रियार्थदर्शन की सोदाहरण | 250 रागादि नित्य और प्राकस्मिक नहीं है उपपत्ति 250 रागादि के प्रतिपक्षी उपाय का ज्ञान असंभवित 233 विषयमर्यादाभंग को आपत्ति का प्रतिकार | 251 लंघनवत् सीमित ज्ञान शक्ति की प्राशंका 234 धूमहेतुक अनुमान उच्छेद प्रतिबन्दी का का उत्तर प्रतिकार 251 प्रतिशयित लंघन क्रिया में अभ्यास कैसे 235 प्रत्यक्षानुपलम्भ से धूम में अग्निजन्यत्वसिद्धि / उपयोगी? - 235 गधे में कुम्भकारनिरूपित कार्यता आपत्ति 252 जलतापवत् सीमितज्ञान की शंका का उत्तर का निराकरण 253 कफधातु के उदाहरण से नियमभंग शंका 236 धूम में अनग्निजन्यता का तीन विकल्प से का उत्तर प्रतिकार | 253 मिथ्याज्ञान के क्षयानंतर पुनरुद्गम का 236 धूम में अदृश्यहेतुकत्व का निराकरण असंभव 237 धम में अग्निजन्यत्व का समर्थन 254 सर्वज्ञज्ञान में प्रत्यक्षत्व कैसे ? उत्तर 237 असर्वज्ञता के साथ वक्तृत्व का सम्बन्ध 255 व्युत्पत्तिनिमित्त को सर्वज्ञ प्रत्यक्ष में उपपत्ति परिहार
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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