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________________ प्रथमखण्ड-का० 1 वेदापौरुषेयत्वविमर्श: 171 अथ न गुणवद्वक्तृकृतत्वेन चोदनायाः अप्रामाण्यनिवृत्तिः, किन्त्वपौरुषेयत्वेन, ततो नायं दोषः। रुषेयत्वं चोदनाया अवगतम् ? यद्यन्यतोऽनुमानात् तदा तत एवाऽपौरुषेयत्वसिद्धर्व्यर्थं प्रकृतमनुमानम् / 'अत एवानुमानात्' चेत् ? नन्वतोऽनुमानादपौरुषेयत्वसिद्धौ प्रेरणाया अप्रामाण्याभावः, तदभावाच्च तथाभतप्रेरणाप्रणेत यासामयेन सर्वपरुषाणामीहशत्वसिद्धिरितीतरेतराश्रयदोषसद्भावः / अतः स्थितमेतत्-तथाभूतानां तथाभूताध्ययनसाधने सिद्ध साधनम् / तन्न निविशेषणो हेतुः प्राक्तनोऽपौरुषोयत्वं साधयति / ___अथ सविशेषणो हेतुः पूर्वोक्तः प्रकृतसाध्यगमकस्तदा विशेषणस्यैव केवलस्य गमकत्वाद् विशेष्योपादानमनर्थकम् / 'भवतु विशेषणस्यैव गमकत्वम् , सर्वथाऽपौरुषोयत्वसिद्ध्या नः प्रयोजनमिति चेत् ? असदेतत् , यतः कत्रस्मरणं विशेषणं किमभावाख्यं प्रमाणम् , अर्थापत्तिः, अनुमानं वा ? यद्यभावाख्यमिति पक्षः, स न युक्तः, अभावप्रमारणस्य प्रामाण्याभावात् / दूसरी बात यह है कि- जिसका प्रामाण्य सिद्ध नहीं है ऐसे प्रेरणावाक्य की रचना तो अतीन्द्रियदर्शन-शक्ति से विकल पुरुष भी करने में समर्थ हैं तो फिर 'अतीन्द्रियार्थप्रतिपादक प्रेरणावाक्य के प्रणयन में कोई भी पुरुष समर्थ न होने से 'सब पुरुष तथाभूत ही हैं-अन्यथाभूत कोई नहीं है'इसकी सिद्धि कहाँ से हो गयी जिससे सिद्धसाधनता न होने की बात आप करते हो ? [अपौरुषेयत्व की सिद्धि दुष्कर-दुष्कर ] अपौरुषेयवादी:-वैदिक प्रेरणावाक्यों में अप्रामाण्याभाव, इस लिये हम नहीं मानते कि वे गुणवान् वक्ता से उच्चारित हैं। किन्तु अपौरुषेय होने से ही वे अप्रामाण्यरहित हैं। उत्तरपक्षी:-अरे! यह प्रेरणावाक्यों का अपौरुषेयत्व कौन से प्रमाण से जान लिया ? क्या दूसरा कोई अनुमान किया? तब तो उस अनुमान से ही इष्ट अपौरुषेयत्व की सिद्धि हो जाने से प्रेरणावाक्यों को अपौरुषेय सिद्ध करने वाला प्रकृत अनुमान बेकार है / तब तो अन्योन्याश्रय दोष प्रसक्त हुआ-प्रकृत अनुमान से अपौरुषेयत्व सिद्ध होने पर प्रेरणा वाक्यों में अप्रामाण्यअभाव की सिद्धि और उस की सिद्धि होने पर अतीन्द्रियार्थप्रतिपादक प्रेरणावाक्य रचना में सामर्थ्य न होने से सकल पुरुषों के तथाभूतत्व यानी समानता की सिद्धि / इस से यह नि:संदेह सिद्ध होता है कि तथाभूत (अल्पज्ञ) पुरुषों के अध्ययन में तथाभूताध्ययनपूर्वकत्व की सिद्धि करने में सिद्धसाधन है। निष्कर्ष:विशेषणरहित अध्ययन शब्दवाच्यत्व हेतु से साध्यसिद्धि नहीं हो सकती। A2 यदि प्रकृत साध्य अध्ययन पूर्वकत्व की सिद्धि में अध्ययनशब्दवाच्यत्व हेतु का 'कर्ता का अस्मरणादि कोई विशेषण माना जाय तो विशेष्यअंश का उपादान ही व्यर्थ हो जायगा, क्योंकि केवल विशेषण ही साध्य की सिद्धि में समर्थ है। अपौरुषेयवादी:-व्यर्थ हो जाने दो-कोई चिन्ता नहीं है। हमारा तो यही प्रयोजन है किसर्वथा-येन केन प्रकारेण अपौरपेयत्व सिद्ध होना चाहीये। उत्तरपक्षी:-B जब वह विशेषण कर्ता का अस्मरण ही अभिप्रेत है, तो यह बताईये कि कर्ता का अस्मरण यह कौन सा प्रमाण है जिससे अपौरुषेयत्व सिद्धि की आशा रखते हैं ? क्या [1] अभावप्रमाणरूप है ? [2] अर्थापत्तिरूप है ? या [3] अनुमान ? अभावप्रमाण वाला पक्ष बिलकुल युक्त नहीं है क्योंकि अभावप्रमाण में प्रामाण्य ही असिद्ध है।
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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