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________________ पृष्ठांकः विषयः पृष्ठांकः विषयः 127 अर्थसंवेदन से ज्ञातव्यापारात्मक प्रमाण की / 141 सादृश्य से शब्द में एकत्वनिश्चय से अर्थअसिद्धि-प्रामाण्यवाद समाप्त बोध का असंभव 128 वेदापौरुषेयतावादप्रारम्भः 142 सादृश्य से होने वाले शब्दबोध में भ्रान्तता प्रापत्ति 128 'जिनानां पदप्रयोग की सार्थकता 143 गकारादि में वाचकता की अनुपपत्ति१२८ बौद्धमतावलम्बन से स्वतःप्रामाण्य के प्रती पूर्व-पक्ष समाप्त कार में अभिप्राय 144 शब्दाऽनित्यत्वस्थापन-उत्तरपक्षः 129 दोषाभावापादक अपौरुषेयत्व ही असिद्ध 144 शब्द अनित्य होने पर भी अर्थबोध की 130 पुरुषाभावग्राहक अभावप्रमाण के संभवित उपपत्ति विकल्पों का निराकरण 144 जातिविशिष्ट में ही व्याप्य व्यापकभाव संगति 130 पौरुषेयत्वाभाव विषयक ज्ञान अभावप्रमाण 146 शब्द में जाति का संभव ही न होने की शंका रूप नहीं घट सकता 146 वर्णान्तरानुसंधान की उपपत्ति 131 प्रमाणपंचकाभाव के संभवित विकल्पों का 147 अनुगताकारप्रतीति के निमित्त का प्रदर्शन निराकरण 148 गकारादिशब्द में सामान्य का समर्थन .. 132 प्रमाणपंचकारहित आत्मा से पुरुषाभाव 146 वर्णादिसंस्कारस्वरूप अभिव्यक्ति को प्रक्रिया का ज्ञान अतिव्याप्त है 146 वर्णसंस्कारपक्ष में शब्द-अनित्यत्व प्राप्ति . 133 घटाभावबोध और पुरुषाभावबोध में न्याय 150 व्यंजक वायु से वर्णस्वरूप का आविर्भाव / समान नहीं है 151 अभिव्यक्ति पक्ष में खण्डित शब्द प्रतीति 133 वादि-प्रतिवादीके या किसी के भी प्रभाव आपत्ति ज्ञानाभाव से प्रमेयाभावाभवसिद्धि अशक्य 151 उत्पत्ति-अभिव्यक्ति पक्ष में समानता का 134 अनादि वेदसत्त्व प्रभावज्ञान प्रयोजक नहीं है उद्धावन-शंका 135 अपौरुषेयत्व में पर्यु दास प्रतिषेध नहीं। 152 वर्ण में सावयवत्व और अनेकत्व की आपत्ति१३६ वेद का अनादिसत्त्व अनुमान से प्रसिद्ध उत्तर 136 कालत्व हेतु की अप्रयोजकता | 153 सकल वर्णों का एक साथ श्रवण होने की 137 अन्यथा भूतकाल का असम्भव सिद्ध नहीं आपत्ति 138 अपौरुषेयत्वसाधक कोई शब्द प्रमाण नहीं | 153 शब्द में श्रव्यस्वभाव का मर्दन और आधान 138 उपमान से अपौरुषेयत्व की प्रसिद्धि मानने में परिणामवाद की प्राप्ति 139 अर्थापत्ति से अपौरुषेयत्व की असिद्धि 154 श्रोत्रसंस्कारस्वरूप अभिव्यक्ति पक्ष की 136 पुरुषाभावनिश्चय में कोई प्रमाण नहीं है समीक्षा 140 अतीन्द्रियार्थप्रतिपादन अपौरुषेयत्वसाधक | 154 श्रोत्रसंस्कारवादी का विस्तृत अभिप्राय नहीं है-वेदापौरुषेयवाद समाप्त 154 एक साथ सकलवर्णश्रवणापत्ति का प्रतिकार 155 व्यंजक का स्वभाव विचित्र होता है 140 शब्दनित्यत्वसिद्धिपूर्वपक्षः 155 इन्द्रियसंस्काराधायक व्यंजकों में वैचित्र्य 141 अनित्यपक्ष में शब्द के परार्थोच्चारण का नहीं है-उत्तर पक्ष असंभव / 156 उभयसंस्कारस्वरूप अभिव्यक्ति की अनुपपत्ति
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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