________________ (23) 85 गाथा // 85 गाथोक्तस्य पत्यस्य सविस्तरं स्वरूपं त्रिलोकसारस्य 93-101 गाथासु द्रष्टव्यम् / 89. अप्पयरपयडिबंधी उक्कडजोगी य सन्निपजत्तो। कुणइ पएसुक्कोसं जहन्नयं तस्स वच्चासे // उक्कडजोगो सण्णी पज्जत्तो पयडिंबंधमप्पदरो। कुणदि पदेसुक्कस्सं जहण्णये जाण विवरीयं // __ कर्मकाण्ड गा० 210. 90-92. मिच्छ अजयचउ आऊ वितिगुण विणु मोहि सत्त मिच्छाई / छण्हं सतरस सुहुमो अजया देसा वितिकसाए // पण अनियट्टी सुखगइनराउसुरसुभगतिगविउविदुगं / समचउरंसमसायं वइरं मिच्छो व सम्मो वा // निदापयलादुजुयलभयकुच्छातित्थ सम्मगो सुजई / आहारदुर्ग सेसा उक्कोसपएसगा मिच्छो / आउक्स्स पदेसं छकं मोहस्स णव दु ठाणाणि / सेसाण तणुकसाओ बंधदि उक्कस्सजोगेण // सत्तर सुहुमसरागे पंचऽणियट्टिम्हि देसगे तदियं / अयदे बिदियकसायं होदि हु उक्कस्सदव्वं तु // छण्णोकसायणिद्दापयलातित्थं च सम्मगो य जदी। सम्मो वामो तेरं णरसुरआऊ असादं तु // देवचउकं वज्जं समचउरं सत्थगमणसुभगतियं / आहारमप्पमत्तो सेसपदेसुक्कडो मिच्छो // कर्मकाण्ड गा० 211-14. 93. सुमुणी दुन्नि असन्नी नरयतिग सुराउ सुरविउविदुगं / सम्मो जिणं जहन्नं सुहुमनिगोयाइखणि सेसा // घोडणजोगोऽसण्णी णिरयदुसुरणिरय आउगजहन्नं / अपमत्तो आहारं अयदो तित्थं च देवचऊ // चरिम अपुणब्भवत्थो तिविग्गहे पढमविग्गहम्हि ठिओ। सुहुमणिगोदो बंधदि सेसाणं अवरबंधं तु // कर्मकाण्ड गा० 216-17.