________________ ( 22) 78. अंतिमचउफासदुगंधपंचवन्नरसकम्मखंधदलं / सबजियणंतगुणरसमणुजुत्तमणंतयपएसं // सयलरसरूवगंधेहिं परिणदं चरमचदुर्हि फासेहिं / सिद्धादोऽभवादोऽणंतिममागं गुणं दवं // कर्मकाण्ड गा० 1910 79. एगपएसोगाढं नियसवपएसओ गहेइ जिओ। एयक्खेचोगाढं सबपदेसेहिं कम्मणो जोग्गं / बंधदि सगहेदूहिं य अणादियं सादियं उभयं // कर्मकाण्ड गा० 185. 79-80. थेवो आउ तदंसो नामे गोए समो अहिओ // विग्यावरणे मोहे सबोवरि वेयणीये जेणप्पे / तस्स फुड न हवइ ठिईविसेसेण सेसाणं / आउगभागो थोवो णामागोदे समो तदो अहियो / पादितिये वि य तत्तो मोहे तत्तो तदो तदिये // मुहदुक्खणिमित्तादो बहुणिज्जरगो ति वेयणीयस्स / सोहिंतो बहुगं दव्वं होदि ति णिदिहें // . कर्मकाण्ड गा० 192-93. 81 गाथा // 81 गाथोक्ताया उत्तरप्रकृतीनां भागप्ररूपणाया विस्तरतो वर्णनं कर्मकाण्डस्य 194-206 गाथासु द्रष्टव्यम् / 82-83. सम्मदरसबविरई उ अणविसंजोयदंसखवगे य। मोहसमसंतखवगे खीणसजोगियर गुणसेढी // गुणसेढी दलरयणाऽणुसमयमुदयादसंखगुणणाए / एयगुणा पुण कमसो असंखगुणनिजरा जीवा // सम्मत्तुप्पत्तीये सावयविरदे अणंतकम्मंसे / दंसणमोहक्खवगे कसायउवसामगे य उवसंते // खवगे य खीणमोहे जिणेसु दवा असंखगुणिदकमा / तविवरीया काला संखेजगुणक्कमा होंति // जीवकाण्ड गा० 66-67.