________________ (20) 52. सवाण वि जिट्ठठिई असुभा जं साइसंकिलेसेणं / इयरा विसोहिओ पुण मुत्तुं नरअमरतिरियाउं // सबाओ दु ठिदीओ सुहासुहाणं पि होति असुहाओ। माणुसतिरिक्खदेवाउगं च मोत्तूण सेसाणं // कर्मकाण्ड गा० 151. 53-54 गाथे // योगस्थानानां निरूपणं कर्मकाण्डस्य 233-40 गाथासु द्रष्टव्यम् / 66. विवमिगथावरायव सुरमिच्छा विगलसुहुमनिरयतिगं / तिरिमणुयाउ तिरिनरा तिरिदुगछेवट्ठ सुरनिरया // मिच्छस्संतिममणवयणरतिरियाऊणि वामणरतिरिये / एइंदिय आदावं थावरणामं च सुरमिच्छे / ................सुरणारयमिच्छगे असंपत्तं / तिरियदुर्ग..................... ___कर्मकाण्ड गा० 168-69. 67. विउविसुराहारदुगं सुखगइवनचउतेयजिणसायं / समचउपरघातसदसपणिदिसासुच्च खवगाउ // उवघादहीणतीसे अपुधकरणस्स उच्चजससादे / समेलिदे हवंति हु खवगस्स व सेस बत्तीसा // , कर्मकाण्ड गा० 167. 68. तमतमगा उओयं............ उज्जोवो तमतमगे... - कर्मकाण्ड गा० 169. 68. ............सम्मसुरा मणुयउरलदुगवइरं / अपमत्तो अमराउं चउगइमिच्छा हु सेसाणं // मणुओरालदुवजं विसुद्धसुरनिरय अविरदे तिबा / देवाउ अप्पमत्ते खवगे अवसेस बत्तीसा // ................सेसा पुण चद्गदिमिच्छे किलिटे य // कर्मकाण्ड गा० 166, 169. 69-73. थीणतिगं अण मिच्छं मंदरसं संजमुम्मुहो मिच्छो / बियतियकसाय अविरय देस पमत्तो अरइसोए // .