________________ थीणुदयेणुढविदे सोवदि कम्मं करेदि जप्पदिय / णिद्दाणिहुदयेण य ण दिट्ठिमुग्धादिदं सको // पयलापयलुदयेण य वहेदि लाला चलंति अंगाई / णिहुदये गच्छंतो ठाइ पुणो वइसइ पडेई // पयलुदयेण य जीवो ईसुम्मीलिय सुवेइ सुत्तो वि / ईसं ईसं जाणदि मुहं मुहं सोवदे मंदं // ___कर्मकाण्ड गा० 23-25. 12. महुलित्तखग्गधारालिहणं व दुहा उ वेयणियं // ‘सादमसादं दुविहं वेदणियं....॥ मूलाचार पर्या० गा० 189. कर्मकाण्ड गा० 14. .. 14. दसणमोहं तिविहं सम्मं मीसं तहेव मिच्छत्तं . 'मिच्छत्तं सम्मत्तं सम्मामिच्छत्तमिदि तिण्णि // ___मूलाचार पर्या० गा० 190. - मिच्छं दवं तु तिघा........ ... कर्मकाण्ड गा० 26. 15. जियअजियपुण्णपावासवसंवरबंधमुक्खनिजरणा / जेणं सद्दहइ तयं सम्मं खइआइबहुभेयं // छप्पंचणवविहाणं अत्थाणं जिणवरोवइट्ठाणं / आणाए अहिगमेण य सद्दहणं होइ सम्म // जीवकाण्ड गा० 561. 16. मीसा न रागदोसो...... एतस्या विषयो मिश्रगुणस्थानीयो जीवकाण्डस्य 21, 22, 655 गाथा स्ववलोकनीयः / मिथ्यात्वगुणस्थानीयश्च 656 गाथायाम् / 17. सोलसकसाय नवनोकसाय दुविहं चरित्तमोहणियं / चरिचमोहं कसाय तह णोकसायं च // - मूलाचार पर्या० गा० 189. 17. अण अप्पचक्खाणा पच्चक्खाणा य संजलणा / कोहो माणो माया लोहोऽणताणुबंधिसण्णा य / अप्पच्चक्खाण तहा पच्चक्खाणो य संजलणो // मूलाचार पर्या० गा० 191.