________________ गाथा पांचमा कर्मग्रन्थनो विषयानुक्रम / विषय 19-51 एकेन्द्रियादि जीवोने आश्री स्थितिबन्धनुं अल्पबहुत्व अने तेने / समजवा माटेनां यंत्रो 47-49 52 कर्मस्थितिना शुभ-अशुभपणानुं कथन 50-51 53-54 सूक्ष्मनिगोदादिजीवोने आश्री योगस्थान अने स्थितिस्थानोना अल्पबहुत्वनुं वर्णन अने तेने लगतां यंत्रो 52-55 अपर्याप्त जीवोने आश्री योगस्थानोनी वृद्धि अने स्थितिबन्धने आश्री सर्व कर्मोना अध्यवसायस्थानोनुं निरूपण 56-62 . पंचेन्द्रियमा जे एकतालीस कर्मप्रकृतिओनो उत्कृष्ट स्थितिए बन्ध जेटला समय सुधी नथी थतो तेनुं निरूपण / 56-63 अनुभागनुं स्वरूप 63 63-64 शुभाशुभ प्रकृतिओना तीन मन्द रस बंधावानां कारणो अने चार प्रकारना रसर्नु स्वरूप 63-66 शुभाशुभ रसोनुं विशेष स्वरूप 66-67 66-68 सर्व कर्मप्रकृतिओने आश्री उत्कृष्ट अनुभागबन्धना स्वामीओ 67-70 69-73 सर्व कर्मप्रकृतिओने आश्री जघन्य अनुभागबन्धना स्वामीओ। 71-76 74 मूल अने उत्तर कर्मप्रकृति विषयक अनुभागबन्धना भांगाओ 76-80 75-77 ग्रहणयोग्य अने अग्रहणयोग्य कर्मवर्गणानुं स्वरूप अने साथे साथे औदारिक-वैक्रियादि समस्त योग्य-अयोग्य वर्गणाओगें स्वरूप तथा तेनुं अवगाहनाक्षेत्र 80-85 78-79 जीवने ग्रहण करवा योग्य कर्मदलिकनुं स्वरूप 85-87 79-81 एक अध्यवसायथी ग्रहण करेला कर्मदलिकोमाथी केटलो केटलो अंश कई कई मूलकर्मप्रकृति अने उत्तरकर्मप्रकृतिने जाय ! तेनुं स्वरूप 87-94 82-83 कर्मक्षपणमां हेतुभूत अगीआर प्रकारनी गुणश्रेणिर्नु स्वरूप अने ते द्वारा थती कर्मदलिकनी निर्जरानुं स्वरूप समजाववा माटे दलिकरचनानुं वर्णन गुणस्थानकोना जघन्य उत्कृष्ट अंतरकाळनुं वर्णन 96-98 सूक्ष्म अने बादर एम बे प्रकारना उद्धार, अद्धा अने क्षेत्र पस्योपम सागरोपमनुं स्वरूप 98-102 86-88 सूक्ष्म अने बादर एम बे प्रकारना द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भाव पुद्गलपरावर्तोनुं स्वरूप, 102-5