________________ प्रस्तावना / 25 संशोधनकार्यमा पूरेपूरी मदद आपी छ / आ सात प्राचीन-प्राचीनतम प्रतिओने सामे राखी पूज्य गुरुप्रवर श्री 1008 श्री चतुरविजयजी महाराजे प्रस्तुत कर्मग्रन्थना द्वितीय विभागर्नु अति गौरवताभयं संशोधन अने संपादनकार्य कर्यु छे अने एने पाठान्तर विगेरेथी विभूषित कर्यो छे / कर्मग्रन्थना प्रथम विभागनी माफक आ विभागनां प्रत्येक फॉर्मनां गुफपत्रोने एक एक वार आदिथी अंत सुधी में अति काळजीपूर्वक तपास्यां छे सेम ज पाठान्तरादिनो निर्णय करवामां यथाशक्य स्वल्प सहकार पण आप्यो छे / ते छतां आ समग्र ग्रन्थना संशोधन अने सम्पादनने लगतो बधो य भार पूज्य गुरुवरे ज उपाड्यो छे ए मारे स्पष्ट रीते कही देवु ज जोइए / आभार ___ आ विभागना. संशोधनमा उपयोगी हस्तलिखित प्राचीन प्रतिओ, भंडारना जे जे कार्यवाहकोए अमने आपवा माटे उदारता दर्शावी छे,-जेमनां नामो अमे उपर प्रतिओना परिचयमां लखी आग्या छीए,-ते सौनो आभार मानीए छीए / ___ आ पछी अमे स्याद्वाद महाविद्यालय-बनारसना जैनदर्शनाध्यापक दिगम्बर विद्वान् श्रीयुक्त महेन्द्रकुमार जैन न्यायतीर्थ-न्यायशास्त्रीनो सविशेष आभार मानीए छोए, जेमणे छए कर्मग्रन्थमा आवता विषयो सम के विषम रीते दिगम्बराचार्यविरचित प्रन्थोमां कये कये ठेकाणे आवे छे तेने लगतो गाथावार स्थलनिर्देशरूप संग्रह तैयार करी आप्यो छ / आ संग्रहने अमे प्रस्तुत विभागना प्रारंभमां प्रकाशित कर्यो छे / ____ आ उपरांत अमे पंडितवर्य श्रीयुत भगवानदास हर्षचन्द्रना नामने पण भूली शकीए तेम नथी / कारण के पं० श्रीमहेन्द्रकुमार महाशये तैयार करेल उपर जणावेल नोंधनी नकल एटली भ्रामक हती के ए नकल प्रेसमां चाली शके ज नहि / आ स्थितिमां आ गौरवमर्यो संग्रह मुद्रणथी वंचित ज रही जात; परंतु पं० श्रीयुक्त भगवानभाईए ते ते दिगंबरीय प्रथो जोइने आ संग्रहनी सुवाच्य अने प्रेसने लायक पांडित्यभरी कॉपी पोताने हाथे नवेसर करी आपी, जेने लीधे आ संग्रह प्रकाशमां आव्यो अने अमालं कर्मग्रन्थोनुं नवीन संस्करण वधारे गौरववतुं बन्युं / आ गौरवमाटेनो खरो यश पं० श्रीभगवानदासभाईने ज छे एम अमे मानीए छीए / क्षमाप्रार्थना-अंतमां विद्वानो समक्ष एटलं ज निवेदन छे के-प्रस्तुत संस्करणना सम्पादन अने संशोधनने निर्दोष बनाववा तेमज गौरवयुक्त करवा अमे गुरु-शिष्ये दरेक शक्य प्रयत्नो कर्या छे। ते छतां आमां जे स्खलना के उणप जणाय ते बदल विद्वानो क्षमा करे एटलुं इच्छी विर# छु / निवेदकगुरुवर श्रीचतुरविजयजी महाराज चरण सेवक मुनि पुण्यविजय