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________________ प्रस्तावना। अलभ्य ग्रन्थो 1 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका 2 ओघनियुक्ति टीका 3 विशेषावश्यक टीका 4 तत्त्वार्थाधिगमसूत्रटीका 5 धर्मसारप्रकरण टीको 6 देवेन्द्रनरकेन्द्रकप्रकरण टीका अहीं जे अन्थोनां नामोनी नोंध आपवामां आवी छे तेमाथी श्रीमलयगिरिशब्दानुशासनं सिवायना बधा य ग्रन्थो टीकात्मक ज छे / एटले आपणे आचार्य मलयगिरिने प्रन्थकार तरीके ओळखीए ते करतां तेमने टीकाकार तरीके ओळखवा ए ज सुसंगत छे आचार्य श्रीमलयगिरिनी टीकारचना-आज सुधीमां आचार्य श्रीहरिभद्र, गंधहस्ती सिद्धसेनाचार्य, श्रीमान् कोट्याचार्य, आचार्य श्रीशीलाङ्क, नवाङ्गीवृत्तिकार श्रीअभयदेवमूरि, मलधारी आचार्य श्रीहमचन्द्र, तपा श्रीदेवेन्द्रमूरि आदि अनेक समर्थ टीकाकार आचार्यो थइ गया छे ते छतां आचार्य श्रीमलयगिरिए टीकानिर्माणना क्षेत्रमा एक जुदी ज भात पाडी छे / श्रीमलयगिरिनी टीका एटले तेमना पूर्ववर्ती ते ते विषयना प्राचीन ग्रन्थो, चूर्णी, टीका, टिप्पण आदि अनेक शाखोना दोहन उपरांत पोता तरफंना ते ते विषयने लगता विचारोनी परिपूर्णता समजवी जोइए / गंभीरमां गंभीर विषयोने चर्चती वखते पण भाषानी प्रासादिकता, प्रौढता अने स्पष्टतामां जरा सरखी पण उणप नजरे पडती नथी अने विषयनी विशदता एटली ज कायम रहे छ / आचार्य मलयगिरिनी टीका रचवानी पद्धति ट्रंकमां आ प्रमाणेनी छे—तेओश्री सौ पहेलां मूळसूत्र, गाथा के श्लोकना शब्दार्थनी व्याख्या करता जे स्पष्ट करवानुं होय ते साथे कही दे छ / त्यार पछी जे विषयो परत्वे विशेष स्पष्टीकरणनी आवश्यकता होय तेमने " अयं भावः, किमुकं भवति, अयमाशयः, इदमत्र हृदयम्" इत्यादि लखी आखा य वक्तव्यनो सार कही दे छ / आ रीते प्रत्येक विषयने स्पष्ट कर्या पछी तेने लगता प्रासंगिक अने अनुप्रासंगिक विषयोने चर्चवानुं तेमज तद्विषयक अनेक प्राचीन प्रमाणोनो उल्लेख करवानुं पण तेओश्री चूकता नथी / एटलं ज नहि पण जे प्रमाणोनो पोते उल्लेख को होय तेने अंगे जरूरत जणाय त्यां विषम शब्दोना अर्थो, व्याख्या के भावार्थ लखवानुं पण तेओ भूलता नथी, जेथी कोई पण अभ्यासीने तेना अर्थ माटे मुझावं न पडे के फांफां मारवां न पडे / आ कारणसर तेमज उपर जणाववामां आव्युं तेम भाषानी प्रासादिकता अने अर्थ तेमज विषयप्रतिपादन करवानी विशद पद्धतिने लीधे आचार्य श्रीमलयगिरिनी टीकाओ अने तेमनुं टीकाकारपणुं समग्र जैन समाजमां खूब ज प्रतिष्ठा पाम्यां छे / 1" यथा च प्रमाणबाधितत्वं तथा तत्त्वार्थटीकायां भावितमिति ततोऽवधार्यम् " प्रज्ञापनासूत्रटीका // 2 // यथा चापुरुषार्थता अर्थकामयोस्तथा धर्मसारटीकायामभिहितमिति नेह प्रतायते / " धर्मसंग्रहणीटीका // 3 " वृत्तादीनां च प्रतिपृथिवि परिमाणं देवेन्द्रनरकेन्द्र प्रपञ्चितमिति नेह भूयः प्रपञ्च्यते " संग्रहणीवृत्ति पत्र 106 //
SR No.004335
Book TitlePancham Shataknama evam Saptatikabhidhan Shashtha Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1997
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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