________________ प्रस्तावना। विस्तृत परिचय पूज्यपाद गुरुदेव श्रीचतुरविजयजी महाराजे प्रथम विभाग़नी प्रस्तावनामा आपेलो होई अहीं मात्र सप्ततिकाप्रकरण अने तेनी टीकाना प्रणेताओ विषे ज विचार करवामां आवे छे। सप्ततिकाना प्रणेता सप्ततिकाप्रकरणकारने लगतो प्रश्न विवादग्रस्त छ। सामान्य प्रचलित मान्यता एवी छे के एना प्रणेता श्रीचन्द्रर्षि महत्तर छे, अने मात्र आ रूढ मान्यताने अनुसरवा खातर पूज्य गुरुवर श्रीचतुरविजयजी महाराजश्रीए पण कर्मग्रन्थना प्रथम विभागनी प्रस्तावनामां अने आ विभागमां सप्ततिकाना शीर्षकमां " श्रीचन्द्रर्षिमहत्तरविरचित" एम जणाव्युं छे / परंतु विचार करतां आ रूढ मान्यताना मूळमां कोई पण आधार जडतो नथी / सप्ततिका प्रकरण मूलनी प्राचीन ताडपत्रीय प्रतोमा चन्द्रर्षिमहत्तरनामगर्भित जे "गाहग्गं सयरीए०" गाथा (आ गाथा अमे उपर लखी आव्या छीए) जोवानां आवे छे ए पण आपणने सत्तरिना प्रणेता चन्द्रार्ष महत्तर होवा माटेनी साक्षी आपती नथी / ए गाथा तो एटलुंज जणावे छे के-"चन्द्रर्षि महत्तरना मतने अनुसरती टीकाना आधारे सत्तरिनी गाथा (70 ने बदले वधीने ) नव्यासी थई छे"। आ उल्लेखमां सित्तरि प्रकरणनी गाथामां वधारो केम थयो एर्नु कारण ज मात्र सूचववामां आव्युं छे, पण एना का विषे एथी कशो य प्रकाश पडतो नथी। आचार्य श्रीमलयगिरि पण टीकानी शरुआतमां के अंतमा ए माटे कशु य जणावता नथी / एटले आ रीते सिचरिना प्रणेता अंगेनो प्रभ अणउकल्यो ज रहे छ। सिचरि प्रकरण चन्द्रषिमहत्तरप्रणीत होवानी मान्यता अमने तो भ्रममूलक ज लागे छे, अने ए तेना अंतनी “गाहग्गं सयरीए०" गाथामां आवता चन्द्रषिमहत्तर ए नामश्रवण मात्र. माथी ज जन्म पामेल छे अने टेवाकारे करेला असम्बद्ध अर्थथी ए भ्रममा उमेरो थयो छ / खरं जोतां चन्द्रर्षि महत्तराचार्ये पंचसंग्रह प्रन्थनी रचना करी छे तेमा संग्रह करेला अथवा समावेला शतक, सप्ततिका, कषायप्राभृत, सत्कर्म अने कर्मप्रकृति ए पांचे अन्थो चन्द्रर्षि महत्तरना पहेलां थइ गएल आचार्योनी कृतिरूप होई प्राचीन ज छ / अत्यारनी रूढ मान्यता मुजब खरेखर जो सप्ततिकाकार अने पंचसंग्रहकार आचार्य एक 1. " गाहगं सयरीए०" गाथानो अर्थ टबाकारे आ प्रमाणे को छ-" चंद्रमहत्तराचार्यना मतने अनुसरवावाळी सित्तर गाथावडे आ ग्रंथ रचायेल छे. तेमा टीकाकारे रचेली नवी गाथाओ उमेरता नेवाशी थाय छ // 11 // विवेचन-ए सप्ततिका प्रन्थकर्ता चन्द्रमहत्तर आचार्ये तो पूर्वे सित्तेर ज गाथा करी हती" इत्यादि / ( श्रेयस्करमंडळनी आवृत्ति)॥ 2" सयगाइ पंच गंथा, जहारिहं जेण एत्थ संखित्ता / दाराणि पंच अहवा, तेण जहत्याभि पणं // 2 // " पञ्चसंग्रहः / " पञ्चानां शतक-सप्ततिका-कषायप्राभृत-सत्कर्म-कर्मप्रकृतिलक्षणानां प्रन्थानाम्, अथवा पञ्चानामर्थाधिकाराणां योगोपयोगमार्गणा-बन्धक-बन्दव्य-बन्धहेतु-बन्धविधिलक्षणानां संग्रहः पञ्चसंग्रहः / " ( पंचसंग्रहः गाथा 1 मलयगिरिटीका ) //