________________ प्रस्तावना। तेना स्पष्टीकरणमाटे टीकाकारे " नवनामेत्युक्तम् ततस्ता एवं नव प्रकृतीदर्शयति " ए प्रमाणेनुं अवतरण मूकी 70 गाथा तरीके जे " मणुयगइ जाइ." गाथा स्वीकारी छे ए ज सुसंगत अने सूत्रकारसम्मत गाथा छ / संशोधनमाटे एकठी करेली ताडपत्रीय वगेरे प्राचीन प्रतोमां पण उपरोक्त बन्ने य गाथाओ नथी / चूर्णिकारभगवाने चूर्णिमां " पंच नव० " गाथा लीधी छे खरी, पण वे मात्र उत्तरप्रकृतिओना व्याख्याननी सूचना पूरती ज, नहि के सूत्रकारनी गाथा तरीके / " मणुयगइ जाइ० " गाथानो तो चूर्णिकारे 58 मी गाथाना स्थानमा निर्देश सरखो य कर्यो नथी, तेम टवाकारे पण आ गाथानो निर्देश कर्यो नथी / आ रीते आ बन्ने य गाथाओ सूत्रकारसम्मत नथी / हवे रही " बारसपणसहसया० " गाथानी वात | आ गाथा उपर अवतरण तेम ज टीका होवा छतां, अमे एने चूर्णिकारना " एएसि उदयविगप्पपयवंदनिरूवणत्थमन्तर्भाष्यगाथा-बारसपणसट्ठसया० " आ कथनानुसार बीजी अन्तर्भाष्यगाथाओनी माफक मूळप्रकरणनी गाथा तरीके गणतरीमा लीधी नथी। - आ रीते प्रसारक सभानी आवृत्तिमा मूळप्रकरणगाथा तरीके प्रकाशन पामेली त्रणे गाथाओ सित्तरिप्रकरणकारनी नथी / सिचरिप्रकरणनी तो 72 गाथाओ ज छ / __मुद्रित प्रकरणमाला तेमज टबा वगेरेमां आ प्रकरणनी 92 गाथाओ जोवामां आवे छे ए बधी ये वधारानी गाथाओ मोटे भागे अर्थनी पूर्ति अने तेना स्पष्टीकरण माटे चूर्णिकारटीकाकारोए चूर्णि-टीकामां आपेली अन्तर्भाष्य आदिनी ज गाथाओ छे / आ वस्तु एना अन्तमा आवती गाथा उपरथी स्पष्ट रीते समजी शकाय छे गाहग्गं सयरीए, चंदमहत्वरमयाणुसारीए / टीगाइ नियमियाणं, एगूणा होइ न ई उ // भाषा अने छंद-जनकल्याणना इच्छुक जैनाचार्योए लोकजिह्वाने अनुकूळ प्राकृतभाषा अने मन्थरचनाने अनुकूळ आर्याछंदने ज मुख्यपणे पसंद करेल होई तेमनी मौलिक दरेक रचनाओ प्राकृतभाषा अने आर्याछंदमां ज थई छे / ए रीते सित्तरी कर्मग्रन्थनी रचना पण प्राकृतभाषा अने आर्याछंदमा ज थइ छ / विषय-पांचमा छट्ठा कर्मग्रन्थना विषयनो परिचय आ विभागमा आपेली विस्तृत विषयानुक्रमणिका जोवाथी वाचकोने मळी रहेशे / __ ग्रन्थकारो नव्य पांच कर्मप्रन्थ अने तेनी स्वोपज्ञ टीकाना प्रणेता आचार्य श्रीदेवेन्द्रसरिवरनो 1. अमारा संपादन मुजब गाथा 67 //