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________________ प्रतिओनी शुद्धाशुद्धिनो विचार--क-ख-ग-घ अने संज्ञक प्रतिओमां थोडे घणे अंशे अशुद्धिओ तो दरेकमा छे ज, तो पण परस्पर तारतम्यतानो विचार करतां बधीये प्रतिओमां क अने घ आ बे प्रतिओ सौ करतां सारामां सारी छे. बाकीनी खग अने ङ आ त्रण प्रतिओमां ख प्रति सारी छे अने ग ऊ आ बे प्रतिओमांथी ग प्रति सारी छे. अर्थात् एक बीजाथी उत्तरोत्तर अधिक अशुद्ध छे. __ आभार-आ विभागर्नु संपादन करती वखते उपरनी पांच प्रतिओनो उपयोग करवामां आव्यो छे. ए पांचे प्रतिओना जुदा जुदा मालिकोए प्रतिओ आपी अमारा संशोधनना कार्यमा जे सुगमता करी आपी छे ते बदल ए महाशयोना उपकारने कोई रोते पण भूली काय तेम नथी. बळी आ भागनुं संपादन करती वखते पं. सुखलालजीए हिंदी भाषामा करेला नवीन चार कर्मग्रंथना अनुवादनो अने तेनी प्रस्तावनानो कोई कोई ठेकाणे आश्रय लीधेलो होवाथी तेमनो पण उपकार मानुं छु. अने छेवटमां मारा विद्वान शिष्य मुनि श्रीपुण्यविजयजीए आ विभागना प्रत्येक फॉर्मनुं अंतिम प्रुफ तपासी आपी अमे संपादनने लगता बीजा कार्यने अंगे जोइती मदद आपी मारा कार्यने जे सरल करी आप्युं छे ते माटे तेओनो पण आ ठेकाणे उपकार मार्नु छु ए सर्वथा उचित लेखाशे. उपरोक पांचे प्रतिओना आधारे बहु ज सावधानता पूर्वक आ विभागनुं संशोधन कषु छे तो पण कोइक ठेकाणे दृष्टिदोष आदिना कारणे त्रुटि रहेवा पामी होय तो वाचक महाशयो सुधारी बांचे ए अंतिम प्रार्थना साथे विरसुं छु. . मुनि चतुरविजय.
SR No.004334
Book TitleChatvar Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1997
Total Pages260
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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