________________ 18 हता एमां सहज पण संदेह नथी. ए बाबतनी साक्षी तेओश्रीना निर्माण करेला ग्रंथो ज पूरी पाडे छे. तेओश्री अद्भुत व्याख्यानशक्ति धरावता होवाथी तेमना धर्मोपदेशने प्रति भासंपन्न वस्तुपाल जेवा मंत्रिओ अने अनेक ब्राह्मण पण्डितो घणा ज रसपूर्वक श्रवण करता हता ए बाबतनो उल्लेख गुर्वावलीमा स्पष्ट पणे मळे छे. - 5 चारित्र-श्रीमान् देवेन्द्रसूरि केवळ विद्वान ज हता एम नहि परन्तु तेओश्री उत्कृष्ट चारित्रधर्मनुं पालन करवामां पण अत्यंत प्रतिज्ञानिष्ठ हता. श्रीमान जगच्चन्द्रसूरिए अपूर्व पुरुषार्थ खेडी तथा असाधारण त्याग धारण करी जे क्रिया उद्धार को हतो एनो निर्वाह श्रीमान् देवेन्द्रसूरि अने श्री विजयचन्द्रसूरि ए बन्ने आचार्योए साथे मळी करवानो हतो; तेम छतां श्रीमान् देवेन्द्रसूरिए एकलाए ज तत्कालीन शिथिलाचारी आचार्योना प्रभावनी असर पोता उपर कोई पण रीते न पडवा देतां श्रीजगञ्चन्द्राचार्यना करेला क्रियाउद्धारने बराबर रीते संभाळी राख्यो अने श्रीविजयचन्द्रसूरि विद्वान् होवा छतां शिथिलाचारी आचार्योना प्रभावमा दबाई जई शिथिल थइ गया. श्रीमान् देवेन्द्रसूरिए लेमने समसा माटे पूरतो प्रयत्न कर्णे परलु ज्यारे तेओ कोई रीते समज्या नहीं त्यारे पोते शुद्धक्रियारुचि होवाथी एमनाथी जुदा थई गया. श्रीमान् देवेन्द्रसूरिनुं चित्त चारित्रधर्मथी एलुं तो संस्कारी हतुं के तेमने शुद्धक्रियामां परायण जोई अनेक संविग्नपाक्षिक अने आत्मार्थी मुमुक्षुओए ए महापुरुषनो आश्रय लीधो हतो. 6 गुरु-श्रीमान् देवेन्द्रसूरिना गुरु वृद्धगच्छीय (क्रियाउद्धार कर्या पछी बृहत् तपागच्छीय) श्रीमान् जगचन्द्रसूरि हता. जेमणे पोताना गच्छमां शिथिलता जोई चैत्रवालगच्छीय श्रीमान् देवभद्रउपाध्यायनी मददथी क्रियाउद्धारना कार्यनो आरंभ कर्यो हतो. आ कार्य माटे तेओश्रीए असाधारण त्यागवृत्ति अने आगमानुसारी शुद्धक्रियाने स्वीकार्या. शरुआतमा तेमणे छ विकृतिओनो त्याग करी जींदगी सुधी आंबेल तप करवानो नियम स्वीकार्यो अने पोताना शरीर प्रत्येना ममत्वनो सदंतर त्याग कर्यो. आ प्रमाणे अतिकदिन आचाम्ल (आंबेल ) तपनी तपस्या करतां बार वर्ष व्यतीत थया बाद तेमने “तपा" ए बिरुद मळ्युं हतुं अने त्यारथी वृद्धगच्छ ए नामने बदले “तपागच्छ” ए नाम प्रवत्यु अने तेओश्री तपगच्छना आद्य पुरुष तरीके प्रसिद्धि पाम्या. गच्छनी परावृत्ति प्रसंगे मंत्रीश्वर वस्तुपाल विगेरेए हार्दिक भक्तिपूर्वक आ महापुरुषनी सत्कार-सम्मानरूप पूजा करी हती. श्रीमान् जगचन्द्रसूरि मात्र तपस्वी ज हता एम नहीं परन्तु अप्रतिम प्रतिभाशाली असाधारण विद्वान् पण हता. जेओए मेदपाट (मेवाड) नी राज्यधानी आघाटमा बत्रीस दिगंबर वादिओनी साथे वाद को हतो. ए वादमां हीरानी जेम अभेद्य रहेवाथी चितोडनरेश तरफथी तेमने “हीरला जगचन्द्रसूरि" एq विरुद मल्युं हतुं. ए महापुरुषने उप्र तपश्चर्या, निर्मलबुद्धि, असाधारण विद्वत्ता अने विशुद्ध चारित्र ए ज अद्भुत विभूति 1 पत्र-१२ श्लोक-११५-११६ जुओ. 2 गुर्वा० पत्र-१२ श्लोक-१२२ यी आगळ एमनुं जीवन जुओ.