________________ टीकाकार जे पदार्थ- विवेचन करे छे ते पदार्थने वधारे स्पष्ट अने मजबूत करवामाटे आगम, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी, टीका अने पूर्वमहर्षिविरचित प्रकरणग्रन्थोमाथी ते से विषयने लगतां प्रमाणो टांकी दे छे. कोई कोई ठेकाणे तो दिगंबर, पुराण बौद्ध अने आयुर्वेदविषयक शास्त्रोनां प्रमाणो मूकी ते ते पदार्थोने सप्रमाण सिद्ध कर्या छे. आ प्रमाणे नव्य कर्मप्रन्थोनी आ टीका एटली तो विशद, सप्रमाण अने कर्मतत्त्वना विषयथी भरपूर छे के एने जोया पछी प्राचीन कर्मग्रन्थो अने तेनी टीका टिप्पणी विगेरे जोवानी जिज्ञासा लगभग शांत थई जाय छे. टीकानी भाषा सरळ, सुबोध अने हृदयंगम होवाथी पठन पाठन करनार सरलताथी कर्मतत्त्वना विपयने प्राप्त करी शके छे. जो के आ टीकामां घणे ठेकाणे अनुयोगद्वार, नंदी अने प्राचीन कर्मग्रन्थ विगेरेनी टीकाना अक्षरशः संदर्भोना संदर्भो नजरे पडे छे पण तेटला मात्रथी अद्भुत अने अपूर्व संग्रह तरीके आ टीकार्नु गौरव कोई पण रीते खंडित थतुं नथी. आ विभागमा आवेल सदीक चार कर्मग्रंथोनुं प्रमाण 5938 श्लोक अने 28 अक्षर छे. कर्मविषयक साहित्य-जैनधर्म मुख्यपणे कर्मसिद्धान्तने माननार होई तेनी श्वेतांबर अने दिगंबर ए बन्ने य शाखामां थयेल स्थविरोए अने विद्वान् आचार्यवोए जे विधविध प्रकारना विपुल ग्रन्थोनी रचना करी छे ए समग्र साहित्यनो अध्ययन दृष्टिए तेम ज तुलनात्मक पद्धतिए अभ्यास करवा इच्छनारने उपयोगी थाय ते माटे प्रस्तुत प्रकाशनने अंते उपलभ्यमान समग्र कर्मविषयक साहित्यनो परिचय आपनार एक परिशिष्ट आप्युं छे. आ परिशिष्ट जोवाथी दरेकने ए पण ख्यालमां आवशे के–अगाध प्रतिभाशाली जैनाचार्योए कर्मविषयक साहित्यने विधविध रीते केटला विशाळ प्रमाणमां खेड्युं छे ?. ग्रन्थकारनो परिचय. . 1 ग्रन्थकर्ता-खोपज्ञटीकायुक्त नव्य पांच कर्मग्रन्थना प्रणेता बृहत्तपागच्छीय श्रीमान् जगचंद्रसूरिजीना शिष्य श्रीदेवेन्द्रसूरि छे, ए वात प्रत्येक कर्मग्रन्थनी प्रशस्ति गुर्वावली गुरुगुणरत्नाकरकाव्य आदि अनेक ग्रन्थोना आधारे निर्विवाद रीते सिद्ध छे. 2 समय-श्रीदेवेन्द्रसूरिनो स्वर्गवास विक्रमसंवत् 1327 मां थयानो उल्लेख गुर्वावलीमा स्पष्ट रीते मळे छे. ए उपरथी एमनो समय लगभग विक्रमनी तेरमी शताब्दी- उत्तरार्द्ध अने चौदमी शताब्दीनो प्रारंभ कही शकाय. एमना जन्म, दीक्षा, सूरिपदप्रतिष्ठा आदिना समयनो उल्लेख कोई पण स्थळेथी मळी शकतो नथी, तेम छतां श्रीमान् जगच्चन्द्रसूरिए क्रियाउद्धार कर्यो ते समये तेओश्री दीक्षित अवस्थामां होवानो संभव छे. श्रीमान् जगच्चन्द्रसूरिए तपागच्छनी स्थापना करी त्यार बाद श्रीदेवेन्द्रसूरि अने श्रीविजयचन्द्रसूरिने सूरिपद समर्पण कर्यानुं वर्णन गुर्वावलीमां आवे छे. / पत्र-१२ श्लोक-११७ जुओ. 2 पत्र-८ श्लोक-४० जुओ. 3 पत्र 16 श्लोक 147 जुओ. 4 पत्र. "झोक 100 जुमओ.