________________ आप्युं छे तेम छतां टीकाकार श्रीगोविन्दाचार्ये पोतानी टीकाना प्रारंभमां अने अन्तमां एनुं नाम कर्मस्तव ज लीधुं छे. आ उपरथी एम लागे छे के मूळग्रन्थकारे पोताना प्रकरणमां बन्धोदयसद्युक्तस्तव एवं नाम आपवा छतां ए नाम बोलवू के याद राखq जनसामान्यने अगवडकर्ता थई पडे ते माटे उपरोक्त नामने टुंकावी कर्मस्तव एबुं बीजं नाम आप्युं होय अथवा टीकाकारे ए नाम टुंकाव्यु होय. गमे तेम हो, पण वीजा कर्मग्रन्थy कर्मस्तव ए नाम पहेलेथी रूढ तो हतुं ज. आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरि तो पोताना जीजा कर्मग्रन्थना अन्तमा वीजा कर्मग्रन्थने कर्मस्तव ए नामथी ज ओळखावे छे.. प्राचीन चोथा कर्मग्रन्थने पडशीति अने आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण ए बे नामथी ओळखवामां आवे छे. मूळ प्रकरणकारे मूळमां प्रकरणना नामनो उल्लेख कर्यो नथी एटले वर्तमानमा प्रचलित उपरोक्त के नाम ग्रन्थकारनी कल्पनामां हशे के केम ? ए कही शकाय नहि; तेम छतां आ कर्मग्रन्थना टीकाकार आचार्य श्रीमान् मलयगिरि अने वृद्धगच्छीय आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिए चोथा कर्मग्रन्थनी गाथासङ्ख्या अने विषयने ध्यानमां लई उपरोक्त वन्ने य नामोनो निर्देश को छे. एटले ए नामो आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरि पहेला हतां ज एम मानवाने प्रबल कारण छे. आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरि तो पोताना नव्य चतुर्थ कर्मग्रन्थने पडशीति ए नामथी ज ओळखावे छे. __ जेम प्राचीन कर्मग्रन्थोनां नाम गाथानी सङ्ख्या तेम ज विषयने लक्ष्यमा राखीने पाडवामां आव्यां छे तेम आचार्य श्रीदेवेन्द्रसरिए पोताना कर्मग्रन्थोने माटे ए ज पद्धति स्वीकारी छे. चोथो अने पांचमो कर्मग्रन्थ तेमनी संक्षेप रचनापद्धति अनुसार टुंकाई जवा छतां नवीन विपयो उमेरीने पण गाथासङ्ख्यानुसार पाडेलां प्राचीन नामोने कायम राखवा तेमणे यत्न कर्यो छे जे आपणे आगळ उपर जोईशं. विषय अने वस्तुवर्णननो क्रम-प्राचीन कर्मग्रन्थकारे पोताना कर्मग्रन्थोमा जे जे विपयो वर्णव्या छे अने तेना वर्णननो जे क्रम राख्यो छे, लगभग ते ज विपयो अने तेना वर्णननो क्रम आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिए पोताना कर्मग्रन्थोमा राख्यो छे. . कर्मग्रन्थोनो क्रम-उपर जणाववामां आव्यु तेम आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिए नव्य कर्मग्रन्थोनी रचना करी ते अगाउ आचार्य श्रीशिवशर्म विगेरे जुदा जुदा आचार्यो द्वारा छ कर्मग्रन्थोनी रचना थई चूकी हती. तेम छतां अत्यारे छ कर्मग्रन्थोने कर्मविपाक कर्मस्तव विगेरे जे क्रममां गोठववामां आवे छे ए क्रम प्राचीन नथी पण अर्वाचीन छे. अर्वाचीन एटले आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिए नव्य कर्मग्रन्थोनी रचना करी त्यारनो. प्राचीन , कर्मबन्धोदयोदीर्यासत्तावैचित्र्यवेदिनम् / कर्मस्तवस्य टीकेयं नत्वा वीरं विरच्यते // 2 इति श्वेतपटाचार्यगोविन्दगणिना कृता / कर्मस्तवस्य टीकेयं देवनागगुरोगिरा // 3 देविंदसूरिलिहियं नेयं कम्मत्थयं सोउं // 4 प्रणम्य सिद्धिशास्तारं कर्मवैचित्र्यवेदिनम् / जिनेशं विदधे वृति पडशीतेर्यथागमम् // . 5 नत्वा जिनं विधास्ये विवृति जिनवल्लभप्रणीतस्य / आगमिकवस्तुविस्तरविचारसारप्रकरणस्य / /